- भगवान शिव की पूजा मूर्ति और शिवलिंग के रूप में होती है।
- शिव जी की उत्पत्ति दो कार्य के लिए हुई है।
- देवी दुर्गा और काल सदाशिव हैं महादेव के माता-पिता।
भगवान शिव के एक नहीं 108 नाम हैं और हर नाम का एक महत्व और मतलब है। महादेव की पूजा करने से मनुष्य को समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की सात्विक ही तांत्रिक पूजा भी की जाती है। भक्त अपनी-अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार शिवजी के विभिन्न रूप की आरधना करते हैं। भगवान शिव ही एक ऐसे ईश्वर हैं, जिनकी पूजा प्रतिमा और शिवलिंग के रूप में अलग-अलग होती है। भगवान शंकर की पूजा उनके परिवार समेत करना अनिवार्य होता है और शिवलिंग की पूजा में शिवजी को अकेले या देवी पार्वती के साथ पूजा जाता है। शिवजी के जन्म से जुड़ी बातें शिव पुराण में उल्लेखित हैं। शिवजी के माता-पिता कौन है यह जानकारी भी शिव पुराण में मौजूद है। तो आइए आपको शिव जी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य बताएं।
भगवान शिव की हैं कई और संतान
हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में भगवान शिवजी का स्थान सर्वोच्च है। भगवान शिव मनुष्य के मन को पढ़ने वाले माने गए हैं। कहा जाता है कि शिवजी के शरण में आने भर से भगवान अपने भक्त के कष्ट और कामनाओं को समझ लेते हैं। अड़भंगी कहे जाने वाले भगवान शंकर केवल मनुष्य ही नहीं हर प्राणी की रक्षा करते हैं और उनकी टोली में जीव-जंतु तक शामिल होते हैं। खास बात ये है कि भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय और भगवान गणेश जी के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि शिव जी की कई और संतानें हैं। उनकी तीन पुत्रियां हैं, अशोक सुंदरी, ज्योति और मनसा। पुत्र के नाम सुकेश, जलंधर, अयप्पा, भूमा, अंधक और खुजा हैं। इन सभी के जन्म के पीछे दंतकथाएं पुराणों में मौजूद हैं।
कौन हैं भगवान शिव के माता- पिता?
श्रीमद्देवी महापुराण में भगवान शिव के माता-पिता के बारे में उल्लेखित है। श्रीमद्देवी महापुराण के अनुसार एक बार जब नारद जी ने अपने पिता ब्रह्मा जी से पूछा किस सृष्टि का निर्माण किसने किया है? साथ ही भगवान विष्णु, भगवान शिव और आपके पिता कौन हैं? तब ब्रह्मा जी ने नारद जी से त्रिदेवों के जन्म के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि देवी दुर्गा और शिव स्वरूप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है। यानी प्रकृति स्वरूप दुर्गा ही हम तीनों की माता है और ब्रह्मा यानी काल सदाशिव हमारे पिता हैं।
एक बार श्री ब्रह्मा जी और विष्णु जी में झगड़ा हुआ। ब्रह्मा जी ने कहा कि सृष्टि मुझसे उत्पन्न हुई है और मैं प्रजापिता हूं। तब विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूं क्योंकि आप मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुए हैं। इन दोनों का झगड़ा सुनकर सदाशिव पहुंचे और उन्होंने कहा कि पुत्रों मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं। इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को संहार और तिरोगति के कार्य दिए हैं। मेरे पांच मुख हैं। एक मुख से अकार (अ) दूसरे मुख से उकार (उ) तीसरे मुख से मुकार (म) चौथे मुख से बिन्दु (.) तथा पांचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं। उन्हीं पांच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर "ऊँ" बना है। यह मेरा मूल मंत्र है।