- दिन की तरह तिथियां भी देवताओं को समर्पित होती हैं
- तिथि के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा करना विशेष फलदायी होता है
- तिथिवार देवताओं की पूजा से आसानी से मनोकामना पूर्ण होती है
हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्योदय से सूर्योदय तक एक दिन माना जाता है। वहीं, एक तिथि उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। यानी तिथि कभी 19 घंटे की तो कभी 24 घंटे की भी हो जाती है। जब तिथि 19 घंटे की होती है तो मध्यरात्रि से दूसरी तिथि लग जाती है। यही कारण है कि कई बार एक त्योहार की तिथि दो दिन पड़ जाती है। असल में तिथि का निर्धारण सूर्य और चंद्रमा के अंतर से तय होता है, लेकिन उसकी गणना भी सूर्योदय से ही की जाती है। उसी तिथि को मुख्य माना जाता है जो उदय काल में पड़ती है। प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष में 15 तिथियां होती है।। क्योंकि सौर दिन से चंद्र दिन छोटा होता है और यही कारण है कि कई बार एक दिन में दो तिथियां पड़ जाती हैं।
जिस तिथि में केवल एक बार सूर्योदय होता है उसे सुधि तिथि कहते हैं और जिस तिथि में सूर्योदय होता ही नहीं यानी वह सूर्योदय के बाद शुरू होकर अगले सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है उसे क्षय तिथि कहते हैं। हिन्दू पंचाग 15 दिन शुक्ल पक्ष और 15 दिन कृष्ण पक्ष होता है। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या होती है। हिंदू धर्म में प्रत्येक देवताओं के लिए विशेष दिवस और तिथि होती है। तो चलिए आपको बताएं कि किस तिथि पर कौन से देवता की पूजा करनी चाहिए।
तिथिवार जानें किस देवता की होती है पूजा
- अमावस्या (अमावस) के देवता अर्यमा मानें गए हैं और ये पितरों के प्रमुख हैं। अमावास्या में पितृगणों की पूजा करने का विधान होता है। पितरों की पूजा से सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है और वंश वृद्धि के साथ धन-रक्षा, आयु तथा बल-शक्ति की प्राप्ति होती है। यह तिथि बलप्रदायक मानी गई है।
- प्रतिपदा (पड़वा) के देवता अग्निदेव माने गए हैं। अग्निदेव की पूजा से मनुष्य को धन की प्राप्ति होती है। यह वृद्धिप्रदायक तिथि है।
- द्वितीया (दूज) के देवता भगवान ब्रह्मा को माना गया है। इस तिथि में ब्रह्माजी की पूजा से समस्त ज्ञान औश्र विद्या से मनुष्य परिपूर्ण होता है। यह शुभदा तिथि होती है।
- तृतीया (तीज) यक्षराज कुबेर को समर्पित है। इस तिथि में कुबेर का पूजन करने से व्यक्ति को कभी धन की कमी नहीं होती। ये बलप्रदायक तिथि हैं।
- चतुर्थी (चौथ) भगवान गणपति को समर्पित है। इस तिथि में भगवान गणेश का पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। यह खला तिथि हैं।
- पंचमी (पंचमी) के देवता नागराज माने गए हैं। इस तिथि में नागदेवता की पूजा करने से सर्पदंश का भय खत्म होता है और मनचाही संतान व पत्नी की प्राप्ति होती। यह लक्ष्मीप्रदा तिथि हैं।
- षष्ठी (छठ) के देवता शिवपुत्र कार्तिकेय माने गए हैं। इस तिथि में कार्तिकेय की पूजा करने से मनुष्य श्रेष्ठ मेधावी, रूपवान, दीर्घायु और कीर्ति को बढ़ाने वाला हो जाता है। यह यशप्रदा तिथि हैं।
- सप्तमी (सातम) के देवता चित्रभानु माने गए हैं। चित्रभानु भगवान सूर्यनारायण का रूप हैं और इनकी पूजा से जीवन में सफलता मिलती है। यह मित्रवत तिथि हैं।
- अष्टमी (आठम) के देवता भगवान रुद्र हैं और इस तिथि को भगवान सदाशिव या रुद्रदेव की पूजा से ज्ञान और कांति की प्राप्ति होती है। यह द्वंदवमयी तिथि हैं।
- नवमी (नौमी) देवी दुर्गा की तिथि मानी गई है। देवी मां की पूजा से मनुष्य हर क्षेत्र में विजयी होता है। यह उग्र अर्थात आक्रामकता देने वाली तिथि हैं।
- दशमी (दसम) के देवता यमराज हैं। यम की पूजा करने से नरक और मृत्यु का भय नहीं रहता है। यह सौम्य अर्थात शांत तिथि हैं।
- एकादशी (ग्यारस) के देवता भगवान विष्णु हैं। भगवान की पूजा करने से संतान, धन-धान्य और भूमि आदि की प्राप्ति होती है। यह आनन्दप्रदा अर्थात सुख देने वाली तिथि हैं।
- द्वादशी (बारस) के देवता भी भगवान विष्णु हैं। इस तिथि को भगवान विष्णु की पूजा करने से मनुष्य सदा विजयी होकर समस्त लोक में पूज्य हो जाता है। यह यशप्रदा तिथि हैं।
- त्रयोदशी (तेरस) के देवता भगवान शिव हैं। त्रयोदशी में कामदेव की पूजा करने से मनुष्य उत्तम भार्या प्राप्त करता है तथा उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यह जयप्रदा अर्थात विजय देने वाली तिथि हैं।
- चतुर्दशी (चौदस) के देवता भी भगवान शंकर हैं। इस तिथि में भगवान शंकर की पूजा करने से मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कर बहुत से पुत्रों एवं प्रभूत धन से संपन्न हो जाता है। यह उग्र अर्थात आक्रामकता देने वाली तिथि हैं।
- पूर्णिमा (पूर्णमासी) पर चंद्रदेव की पूजा होती है और पूजा करने से मनुष्य का सभी जगह आधिपत्य हो जाता है। यह सौम्या तिथि हैं।
तो तिथि अनुसार सभी देवी-देवताओं का पूजन करने से मनुष्य की मनोकामनाएं आसानी से पूर्ण होती हैं।