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Janmashtami: इस व्रत कथा के बिना अधूरी है जन्माष्टमी, सुनने मात्र से ही मिलता है पुण्य

Updated Aug 21, 2019 | 09:03 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म कथा को सुनने और कहने का पुण्य बहुत होता है। यदि आप संकट में हों तो कान्हा के जन्म कथा को जरूर पढ़ें।

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तस्वीर साभार:&nbspGetty Images
Janmashtami vrat katha
मुख्य बातें
  • जन्माष्टमी पर जरूर सुननी चाहिए श्रीकृष्ण कथा
  • कान्हा के जन्म कथा सुनने से संकट भी होते हैं दूर
  • पापियों के नाश के लिए श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था

भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और इसी कारण इस दिन को जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। वासुदेव और देवकी नंदन का जन्म रोहणी नशत्र में हुआ था ओर जब वह जन्मे थे तब घनघोर अंधेरी रात और तेज बारिश हो रही थी। उनका जन्म कंस के शासन काल में कारागार में हुआ था।

कान्हा का जन्म द्वापर युग में हुआ था। मथुरा के भोजवंशी राजा उग्रसेन का पुत्र कंस ने उन्हें गद्दी से जबरदस्ती उतार कर खुद को बिठा लिया। वह बेहद क्रूर और निर्यदयी राजा था। कंस की बहन देवकी थीं और उनका विवाह वासुदेव से हुआ था और वह एक यदुवंशी सरदार थे।

हुई थी कंस को भविष्यवाणी
कंस के आतंक और क्रूरता से पूरी प्रजा त्राहि-त्राहि कर रही थी। हर कोई उसके आंतक से मुक्ति चाहता था। एक दिन वह अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल ले जा रहा था तभी रास्तें में उसे आकाशवाणी हुई। कि कंस तेरी क्रूरता और आतंक का नाश तेरी ही बहन का पुत्र करेगा। तेरा काल तेरी बहन ही ले कर आएगी। उसका आठवां पुत्र तेरे अंत का कारण होगा। इतना सुनते ही उसका अपनी बहन के प्रति प्रेम खत्म हो गया और वह वासुदेव को ही खत्म करने की ठान लिया लेकिन देवकी ने कहा कि वह खुद अपने संतान को उसे सौंप देगी। यह बात सुन कर कंस ने वासुदेव का मारा तो नहीं लेकिन देवकी और वासुदेव को बंदी बना कर कारागार में डाल दिया।

सात बच्चों को मार दिया था कंस ने
वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चों को कंस ने मार दिया और जब आठवें बच्चे के होने की बारी आई तो पहरा और सख्त कर दिया। उधर, वासुदेव के मित्र नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था और यही वह मौका था जब कंस की आंख में धूल झोंकी जा सकती थी। फिर क्या था एक ही दिन देवकी ने पुत्र और यशोदा ने पुत्री को जन्म दिया। लेकिन देवकी ने जब पुत्र को जन्म दिया तो उसी वक्त भगवान विष्णु उनके समक्ष प्रकट हुए और कहा कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म ले रहे हैं और वह नंद के घर पलेंगे। फिर क्या था प्रभु कि कृपा से सभी रक्षक गहरी नींद में सो गए और कारागार का द्वार खुल गया। वासुदेव ने कान्हा को एक टोकरे में रखा और यमुना पार कर नंद के घर गए और कान्हा के बदले पुत्री को कारागार ले आए। जब वह कारागार आ गए तब सबकी नींद खुली।

कन्या निकलीं देवी मां
कंस को जब पता चला कि देवकी की संतान हो गई तो वह कारगार आया और देखा कि आठवीं संतान तो लड़की है, लेकिन डर के कारण उसने आठवीं संतान के रूप में उस कन्या को भी दीवार पर पटक दिया। लेकिन उसके पटकते ही कन्या आकाश में उड़ गई और कंस को कहा कि मूर्ख तुझे नाश करने वाले ने तो जन्म ले लिया है और वह तुझे तेरी पापों की सजा जरूर देगा। यह कह कर कन्या आकाश में विलीन हो गई। यह कन्या देवी मां का स्वरूप थी।

ढूंढता रहा कंस कान्हा को
गोकुल, मथुरा, वृंदावन हर जगह कंस कान्हा को ढूंढता रहा लेकिन कान्हा जब उसके सामने आए तो वह उसका यानी कंस का आखिरी दिन था।

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