- महाभारत के कई चरित्र, घटनाएं व कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं
- आज जब भारत और पूरी कोरोना वायरस से लड़ रही है ऐसे में महाभारत से हमें कई चीजें सीखने को मिलती है
- पांडवों का अज्ञातवास हमें सिखाता है कि इस तरह के हालात को हमें कैसे हैंडल करना चाहिए
1990 के दौर का एपिक शो महाभारत आज भी उतनी ही लोकप्रिय साबित हो रहा जितना इसका क्रेज उस समय देखने को मिलता था। महाभारत के कई चरित्र, घटनाएं व कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं। राजनीति, षड़यंत्र, युद्ध, प्लानिंग हर तरह की चीजें महाभारत में देखने को मिलती है। मुश्किल घड़ी में किस तरह से अपने चीजों को संभाला जाता है व हालात को संतुलित किए जाते हैं इन सबके बारे में महाभारत हमें सिखाता है।
आज जब भारत और पूरी कोरोना वायरस से लड़ रही है ऐसे में महाभारत से हमें कई चीजें सीखने को मिलती है। जिसने भी महाभारत देखी होगी उन्हें अच्छे से पता होगा कि पांडवों ने अपनी माता कुंती के साथ अज्ञातवास भी जिया था। इस दौरान उन्होंने अपनी पहचान छुपाकर कई महीनों तक लोगों से छुपकर अपना जीवन यापन किया था और इसी अज्ञातवास के दौरान अपनी आगे की रणनीति भी तैयार कर ली थी। पांडवों का अज्ञातवास हमें सिखाता है कि इस तरह के हालात को हमें कैसे हैंडल करना चाहिए।
जब आपका दुश्मन धूर्त हो तो आपको अपनी रणनीति बदल देनी चाहिए
महाभारत में जब ये तय हो गया कि कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध होने से अब कोई नहीं रोक सकता है। दुर्योधन और अर्जुन युद्ध के पहले दोनों भगवान श्रीकृष्ण के पास गए। श्रीकृष्ण उस समय सो रहे थे तो दोनों ने उनके उटने का इंतजार करने का फैसला किया। ऐसे में दुर्योधन श्रीकृष्ण के माथे के पास बैठ गए और अर्जुन उनके पांव के पास बैठ गए। इसके बाद जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण की आंख खुली तो उनकी नजर सीधे अपने पांव के पास बैठे अर्जुन के ऊपर पड़ी। इसके बाद ये तय हो गया कि कृष्ण महाभारत के युद्ध में अर्जुन की तरफ होंगे। इससे ये साबित हो जाता है कि कोई भी लड़ाई केवल अहंकार और हथियार के बल पर नहीं बल्कि बुद्धि के बल पर भी जीती जाती है।
कभी-कभी बुद्धिमानी संख्याबल पर भारी पड़ती है
कौरवों की संख्या 100 थी जबकि पांडवों की संख्या 5 थी। लेकिन सभी को पता है कि महाभारत में कौरवों की नहीं बल्कि पांडवों की जीत हुई थी और वो इसलिए क्योंकि पांडवों ने धर्म के साथ युद्ध लड़ा था जबकि कौरव छल के साथ युद्ध में उतरे थे।
धैर्यवान बनाता है
पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान जाने कितनी तरह की तकलीफें झेलीं लेकिन उनका उद्देश्य साफ था और सारी कष्टों को झेलते हुए अपने लक्ष्य पर अपना ध्यान लगाए रखा। अपने लक्ष्य से वे कभी भी नहीं भटके और पांडवों की यही चीज हमें धैर्यवान और लक्ष्य पर टिके रहने की सीख देती है। पांडवों को इस दौरान रहने की दिक्कतें आई खाने की पहनने की और कई बार असामाजिक तत्वों (राक्षसों) से भी उन्हें लड़ना पड़ा लेकिन उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया और अपने उद्देश्य से नहीं भटके। इतनी तकलीफें सहते हुए भी उन्होंने कभी धर्म का साथ नहीं छोड़ा।