सूरत. दक्षिण गुजरात के समुद्र में 130 फीट की गहराई में रिसर्चरों को मिली नगर रचना विलुप्त हो चुकी भगवान कृष्ण की द्वारका नगरी का एक हिस्सा है। ये नगर रचना 10 हजार साल पुरानी द्वारका नगरी है। रिसर्चरों को मिली लकड़ी की चीज की कॉर्बन डेटिंग से इसकी पुष्टि हुई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक ये नगर रचना सूरत शहर के समीपवर्ती ओलपाड तहसील के डभारी गांव के समुद्र क्षेत्र में है।
समुंद्र मंथन के भी मिले थे अवशेष
अरब सागर में प्रदूषण के प्रमाण की जांच पड़ताल के दौरान ये डूबा हुआ नगर मिला था। हालांकि, कुछ कारणों से इस विषय बिंदु पर काम नहीं हो सका। अब आधुनिक तकनीक की मदद भगवान कृष्ण की समुद्र में डूबे द्वारका नगरी के अवशेष की तलाश शुरू होने की तैयारी है। गौरतलब है कि 1988 में इसी समुद्र क्षेत्र में ऑकिर्योलॉजी एंड ओशन टैक्नोलॉजी विभाग को समुद्र के गर्भ एक पर्वत मिला था। ये पर्वत समुद्र मंथन के वक्त इस्तेमाल हुए शिखर का हिस्सा होना कहा गया है।
कच्छ तक थी द्वारिका नगरी
रिसर्च टीम के हेड डॉ. एस कथरोली की अगुवाई में जांच दल सदस्य पुरातत्व विशेषज्ञ मितुल त्रिवेदी समुद्र में 800 फीट तक गए। उन्होंने इस प्राचीन नगर को देखा। उनका कहना है कि द्वारिका एक बड़ा राज्य था। खंभात और कच्छ की खाड़ी नहीं थी। यहां जमीन थी। मौजूदा द्वारिका से लेकर सूरत तक पूरी समुद्र क्षेत्र में एक दीवार देखने में आती है। यह कृष्ण का राज्य था। सूरत के पास मिली रचना द्वारिका से मिलती है।
अब तक 250 नमूने मिले
डॉ. एस. कथरोली की अगुआई में हुई रिसर्च में नर्मदा नदी के मुख्य स्थल से 40 किमी दूर और तापी नदी के मुख्य स्थल के पास अरब सागर के उत्तर-पश्चिम में प्राचीन नगर के अवशेष मिले थे। तब 130 फीट गहराई में 5 मील लंबे और करीब 2 मील चौड़ाई वाला 10 हजार साल पुराना नगर मिला था।मरीन आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट ने 2 साल की रिसर्च में 1000 नमूने खोजे, जिनमें से 250 आर्कियोलॉजिकल अहमियत रखते हैं।