- विज्ञान और धार्मिक नजरिए से ग्रहण का होता अलग-अलग महत्व
- समुंद मंथन से जुड़ी है ग्रहण की पौराणिक कथा
- धार्मिक दृष्टिकोण से चंद्र ग्रहण को माना जाता है अशुभ
Rahu Ketu Story of Lunar Eclipse: वैशाख माह की पूर्णिमा या बुद्ध पूर्णिमा के दिन साल 2022 का पहला चंद्र ग्रहण लगने वाला है। यह खग्रास या पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। लेकिन भारत में यह ग्रहण नहीं देखा जा सकेगा। इसलिए यहां इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा और सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। ग्रहण सोमवार, 16 मई सुबह 08:59 में लगेगा और 10:23 पर समाप्त हो जाएगा। चंद्र ग्रहण की कुल अवधि 1 घंटे 24 मिनट होगी। भारत में यह ग्रहण दिखाई नहीं देगा लेकिन दक्षिण-पश्चिमी यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण-पश्चिमी एशिया, अधिकांश उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, अटलांटिक और अंटार्कटिका में इस चंद्र ग्रहण को देखा जा सकेगा।
ग्रहण का लगना विज्ञान और धार्मिक दृष्टिकोन से महत्वपूर्ण माना जाता है। विज्ञान में चंद्र ग्रहण को एक खगोलीय घटना कहा जाता है। जिसके अनुसार सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा जब एक रेखा में आ जाते हैं तो चांद को पृथ्वी की छाया पूरी तरह से ढक लेती है। ऐसे में पूर्ण चंद्र ग्रहण लगता है। इस दौरान चंद्रमा लाल दिखाई पड़ता है। आसान भाषा में समझें तो, सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो चंद्रमा पर प्रकाश पड़ना बंद हो जाता है, इसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं। वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से चंद्र ग्रहण को अशुभ माना जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
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समुंद्र मंथन से जुड़ी है ग्रहण की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश निकला तो, अमृतपान करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच विवाद हो गया। इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु के सुंदर स्त्री मोहिनी का रूप धारण किया। विष्णुजी ने देवताओं और असुरों को अमृतपान कराने के लिए अलग-अलग पंक्ति में बैठा दिया। विष्णुजी ने असुरों से बचा कर देवताओं को अमृतपान करा दिया। लेकिन राहु, देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और अमृतपान कर लिया। चंद्रमा और सूर्य ने राहु को अमृतपान करते हुए देख लिया और यह बात उन्होंने भगवान विष्णु को बता दी।
इसलिए अशुभ माना जाता है चंद्र ग्रहण
राहु के अमृतपान करने की बात सुनते ही भगवान विष्णु क्रोधित हो गए और उन्होंने गुस्से में अपने सुदर्शन चक्र से राहु पर वार किया। लेकिन राहु अमृत पान कर चुका था, जिस कारण सुदर्शन चक्र का असर उस पर नहीं हुआ और वह फिर से जीवित हो गया। तब भगवान विष्णु ने राहु के दो टुकड़े कर दिए। जिससे ऊपर वाला भाग राहु कहलाया और नीचे वाला भाग केतु।
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इस कारण लगता है चंद्र को ग्रहण
इस घटना के बाद राहु ने चंद्रमा और सूर्य को अपना शत्रु मान लिया। इसलिए हर पूर्णिमा के दिन राहु-केतु चंद्रमा को घेर लेते हैं और उसकी रोशनी रोक देते हैं। जब वह इसमें सफल हो जाते हैं तो इसे ही चंद्र ग्रहण कहा जाता है। यही कारण है कि धार्मिक दृष्टिकोण से ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता है और ग्रहण लगने पर देवी-देवताओं की पूजा नहीं की जाती है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)