- हिंडोली की रामसागर झील के रघुनाथ घाट मंदिर के महादेव जी
- राजस्थान के बूंदी जिला में है यह सिद्ध मंदिर
- लोग शादी की आस में माता पार्वती की मूर्ति को चुराते हैं।
(अरविंद सिंह)
कोरोना महामारी के चलते, लॉक डाउन से सभी दुखी है। कोई दुखी है कि कचोरी-समोसा नही मिल पा रहा है, कई मिठाई नही मिलने से परेशान थे औऱ ज्यादातर इसलिए परेशान थे कि गाईडलाईन में शराब की दुकानों को ना खोलने का निर्देश पुख्ता तरीके से हाईलाईट किया गया था।बूंदी के लोग दुखी है क्योकि ग्रीन जोन में होने के बावजूद वे घरों में बंद है, अपनी अपनी पत्नियों के साथ। अब इसे सौभाग्य माने या दुर्भाग्य, ये अपनी अपनी कहानी पर निर्भर है। पर बूंदी में सबसे ज्यादा दुखी है हिंडोली की रामसागर झील के रघुनाथ घाट मंदिर के महादेव जी।
महादेव जी की परेशानी की वजह कुछ और
महादेव जी इसलिए परेशान नही कि ना तो भांग का भोग लग पा रहा है औऱ ना ही कोई आंकड़ा-धतूरा ले कर दर्शन को आ रहा है। वे परेशान है क्योकि पार्वती जी, अभी तक नही लौटी है। हिंडौली में मान्यता के अनुसार अगर कोई कुंवारा व्यक्ति रघुनाथ घाट मंदिर से पार्वती जी का अपहरण कर अपने घर के लॉकड़ाउन में रखता है तो उसकी जल्दी ही शादी हो जाती है। शादी के बाद, पार्वती जी की मूर्ती को रीति-रिवाज पूर्वक मंदिर में महादेव जी के पास फिर से स्थापित करने का रिवाज है।
महादेव और पार्वती के मिलन की दिलचस्प कहानी
ल़ॉकडाउन के चलते शादियों पर ब्रेक लग चुका है। महादेव जी को पार्वती जी वापस मिलने की उम्मीद भी अभी धुंधली है। कारण ये कि चार जुलाई को देव सो जायेगें। अगर ऐसा हुआ तो तो फिर से देवउठनी ग्यारस आने तक महादेव जी को भूत औऱ भभूत से ही काम चलाना पड़ेगा। मुश्किल ये है कि इस बार जिसने भी पार्वती जी के अपहरण का अपराध किया है, उसके पास पार्वती के पूजन के सिवा कोई चारा नही। क्योकि लॉकडाउन भी पांबदियों के बीच रिश्तेदारी में देखना-दिखाना भी अभी केवल मोबाइल फोन से ही हो पा रहा है। ऐसे में जिस भी कुंवारे ने इस बार पार्वती जी अपहरण किया है, उसे महादेव की तीसरी आंख भी ढूंढने का प्रयास कर रही है पर उसका शुक्र ग्रह इतना कमजोर है कि कोरोना वायरस की धुंध में चमक नही पा रहा है।
मिलन में रोड़ा बना लॉकडाउन
अखंड़ कुंवारा भाई तो छह महीने पार्वती जी की सेवा औऱ सुनहरे भविष्य की आस में काट लेगा, पर मुश्किल महादेव जी की है। पहले तो पार्वती जी अपह्रत हो भी जाती थी तो महीने - दो महीने में वापसी हो जाती थी। महादेव जी भी आजादी के दिनों को गणों के साथ एंजाय कर लेते थे। पर अब महादेव जी के पास अकेले धूणी रमाने के अलावा कोई चारा नजर नही आता। लब्बोलुआब ये, जो कि सदियों पहले से हाड़ौती के सयाने लोग कहते आ रहे है – चेलकियां सै चैल चाल जावें, तो बाबों बूढी क्यूं लावै।