- छठ पूजा की शुरुआत 18 नवंबर से हो रही है
- छठ पर्व कुल चार दिनों का होता है
- सुबह के अर्घ्य के साथ इसका समापन 21 नवंबर को होगा
नई दिल्ली: छठ पूजा की शुरुआत इस साल 18 नवंबर से हो रही है। हिंदू धर्म संस्कृति में खासकर पूर्वांचल के लिए छठ पूजा का विशेष महत्व है।यह पर्व सूर्य भगवान की अराधना का है जिसमें श्रद्धालु या व्रती उपवास करते हुए दो दिन याानी सुबह और शाम का अर्घ्य देते हैं। कार्तिक महीने में मनाया जाने वाला छठ पूजा एक महान पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह भगवान सूर्य की अराधना का पर्व है जिसमें उगते सूरज के साथ डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है।
आस्था का महापर्व छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस बार षष्ठी तिथि 20 नवंबर 2020 यानी शुक्रवार को है। छठ पूजा बिहार और झारखंड के निवासियों का प्रमुख त्योहार है लेकिन मुख्यत: यह पूरे पूर्वांचल में मनाया जाता है। चार दिन तक चलने वाले छठ पूजा पर्व पर यूपी, बिहार और झारखंड में जबरदस्त उत्सव और उत्साह का महौल देखने को मिलता है। इस बार छठ पूजा 18 से 21 नवंबर तक है। छठ पूजा 4 दिनों तक चलने वाला एक लोक पर्व है। यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होता है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को समाप्त होता है।
कार्तिक माह के छठे दिन मनाया जाने वाला छठ का त्योहार 4 दिनों तक चलता है, इसलिए इस बार यह त्योहार 18 नवंबर से शुरू होगा और 21 नवंबर तक चलेगा।
18 नवंबर 2020, बुधवार- चतुर्थी (नहाय-खाय)
19 नवंबर 2020, गुरुवार- पंचमी (खरना)
20 नवंबर 2020, शुक्रवार- षष्ठी (डूबते सूर्य को अर्घ्य)
21 नवंबर 2020, शनिवार- सप्तमी (उगते सूर्य को अर्घ्य)
1. पहला दिन नहाय खाय-चतुर्थी
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को यह व्रत आरंभ होता है। इसी दिन व्रती स्नान करके नए वस्त्र धारण करते हैं।
2. दूसरा दिन खरना-पंचमी
कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना बोलते हैं। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती भोजन करते हैं।
3. षष्ठी
इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाते हैं। इस दिन ठेकुआ या टिकरी बनाते हैं। प्रसाद तथा फल से बाँस की टोकरी सजाई जाती है। टोकरी की पूजा कर व्रती सूर्य को अर्ध्य देने के लिए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा करते हैं।
4. सप्तमी
सप्तमी को प्रातः सूर्योदय के समय विधिवत पूजा कर प्रसाद वितरित करते हैं।
20 नवंबर को शाम के अर्घ्य का समय: 5 बज के 25 मिनट और 26 सेकेंड का निर्धारित किया गया है। 21 नंबर को सुबह के अर्घ्य का समय 6 बज कर 48 मिनट 52 सेकेंड निर्धारित किया गया है। गौर हो कि छठ पूजा में पहला अर्घ्य शाम को दिया जाता है और दूसरा अर्घ्य सप्तमी को यानी सुबह में दिया जाता है जिसके बाद छठ व्रत की समाप्ति होती है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य देव की उपासना करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है और ऊर्जा का संचार होता है। इस दिन हिंदु धर्म में मान्यता रखने वाले और छठी मइया के भक्त किसी नदी या तलाब में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से छठी मइया की पूजा अर्चना करने से निसंतान के संतान की प्राप्ति होती है।
छठ पूजा को लेकर रामायण में भी उल्लेख किया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया गया। इसके लिए भगवान राम ने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम और माता सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम और सीता स्वयं मुग्दल ऋषि के पास आए और उन्हें पूजा के बारे में ऋषि ने बताया। मुग्दल ऋषि ने माता सीता को गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना करने का आदेश दिया। मुग्दल ऋषि के आज्ञा का पालन करते हुए माता सीता ने छह दिन तक भगवान सूर्यदेव की पूजा की। इस मान्यता के अनुसार प्रत्येक वर्ष छठी मइया की अराधना कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा को मनाया जाता है।