- सूर्योदय के अनुसार ही अष्टमी पूजा तय होती है
- इस दिन स्नान के जल में गंगाजल जरूर मिश्रित करें
- अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प देवी की पूजा करनी चाहिए
शारदीय नवरात्र में अष्टमी और नवमी का विशेष महत्व होता है। इस बार मासिक दुर्गाष्टमी भी नवरात्रि के दौरान ही पड़ रही है, इसलिए इसका महत्व अपने आप बढ़ जाता है, लेकिन दुर्गाष्टमी की तिथि को लेकर लोगों में उलझन ज्यादा है, क्योंकि 23 अक्टूबर से सप्तमी के उपरांत अष्टमी और 24 अक्टूबर को अष्टमी के उपरांत ही नवमी लग रही है। ऐसे में किस दिन कौन सी तिथि मान्य होगी, आम लोगों की समझ में नहीं है। तो आइए ज्योतिष के हिसाब से जानें कि मासिक अष्टमी किस दिन मनाई जानी चाहिए?
अष्टमी शुरू या खत्म होने का समय का देना होगा ध्यान (Durga Ashtami Tithi)
शास्त्रों में उल्लेखित है कि जिस दिन सूर्योदय के समय आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि हो उस दिन ही श्रीदुर्गाष्टमी और महाष्टमी का व्रत और पूजन किया जाना चाहिए, लेकिन तभी जब अष्टमी तिथि सूर्योदय के कम से कम 1 घड़ी यानी 24 मिनट तक हो। सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि को महाअष्टमी की पूजा नहीं की जा सकती। वहीं यदि दूसरे दिन अष्टमी तिथि 24 मिनट से भी कम हो तब इस स्थिति में सप्तमी युक्त अष्टमी पर ही अष्टमी का पूजन करना चाहिए।
सूर्योदय के अनुसार करें पूजन ((Durga Ashtami Pujan Time)
देश के कुछ भागों में 24 अक्टूबर को अष्टमी तिथि एक घड़ी से भी कम है, ऐसे में उन भागों में अष्टमी का व्रत-पूजन 23 अक्टूबर को ही कर लेना शास्त्र सम्मत होगा। वहीं जहां सूर्योदय सुबह 6 बजकर 35 मिनट से पहले होगा वहां पर 24 अक्टूबर को अष्टमी की पूजा करनी चाहिए। तो सूर्योंदय और सूर्यास्त के समय के अनुसार अष्टमी का पूजन तय करें।
पंचांग दिवाकर के अनुसार ((Durga Ashtami Panchang Time)
- नवरात्र अष्टमी तिथि आरंभ 23 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 57 मिनट
- नवरात्र अष्टमी तिथि समाप्त 24 अक्टूबर 6 बजकर 59 मिनट तक
इसके बाद नवमी तिथि आरंभ।
इस विधि से करें व्रत-पूजन (Durga Ashtami Vrat Pujan)
गंगाजल डाल कर स्नान कर लें और इसके बाद चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर लें। फिर अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प देवी को अर्पित करें। फल और मिठाई चढ़ाने के बाद देवी को धूप दिखाएं और दीप जला कर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर माता की आरती करें। फिर हाथ जोड़कर देवी से प्रार्थना करें माता आपकी इच्छा जरूर पूरी करेंगी।
दुर्गा अष्टमी कथा (Durga Ashtami Katha)
शास्त्रों के अनुसार, सदियों पहले पृथ्वी पर असुर बहुत शक्तिशाली हो गए थे और वे स्वर्ग पर चढ़ाई करने लगे। उन्होंने कई देवताओं को मार डाला और स्वर्ग में तबाही मचा दी। इन सबमें सबसे शक्तिशाली असुर महिषासुर था। भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने शक्ति स्वरूप देवी दुर्गा को बनाया. हर देवता ने देवी दुर्गा को विशेष हथियार प्रदान किया। इसके बाद आदिशक्ति दुर्गा ने पृथ्वी पर आकर असुरों का वध किया। मां दुर्गा ने महिषासुर की सेना के साथ युद्ध किया और अंत में उसे मार दिया. उस दिन से दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ।