- मत्स्य जयंती पर भगवान विष्णु की होती है पूजा, मत्स्य माना जाता है भगवान विष्णु का पहला अवतार।
- सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मत्स्य का अवतार लिया था, इसकी पुष्टि मत्स्य पुराण में की गई है।
- मत्स्य जयंती अधिकतर गणगौर पूजा के साथ पड़ती है, इस वर्ष भी मत्स्य जयंती और गणगौर पूजा एक ही दिन पड़ रहे हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष मत्स्य जयंती चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाई जाती है। मत्स्य पुराण के अनुसार, पुष्पभद्रा नदी के तट पर भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार मत्स्य के रूप में लिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि इस सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मत्स्य का अवतार लिया था। उन्होंने एक विशाल नाव का निर्माण किया था और इसमें इस पृथ्वी पर मौजूद सभी जनजातियों को जगह दे कर सबकी जान बचाई थी। कहा जाता है कि जो भक्त मत्स्य जयंती पर भगवान विष्णु की पूजा करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा उस इंसान को अपने किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है।
मत्स्य जयंती 2021 तिथि और मुहूर्त
मत्स्य जयंती तिथि: - 15 अप्रैल 2021
तृतीया तिथि प्रारंभ: - 14 अप्रैल 2021 (दोपहर 12:47)
कृपया तिथि समाप्त: - 15 अप्रैल 2021 (दोपहर 03:27)
मत्स्य जयंती की कथा हिंदी में
द्रविड़ देश के राजर्षि सत्यव्रत एक दिन कृतमाला नदी में स्नान कर रहे थे। जलि में जल लेने पर उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आ गई। राजा ने मछली को पुन: नदी के जल में छोड़ दिया। जैसे ही उन्होंने मछली को जल में पुनः छोड़ा तो उसने कहा कि हे राजन नदी के बड़े बड़े जीव छोटे जीवों को खा जाते हैं। मुझे भी कोई मारकर खा जाएगा। कृपया मेरे प्राणों की रक्षा करें।
यह बात सुनकर मछली को अपने कमंडल में डाल दिया, लेकिन एक ही रात्रि में मछली का शरीर इतना बड़ गया कि कमंडल छोटा पड़ने लगा। तब राजा ने मछली को निकालकर मटके में डाल दिया। वहां भी मछली एक रात में बड़ी हो गई। तब राजा ने मछली को निकालकर अपने सरोवर में डाल दिया। अब वह निश्चिंत थे कि सरोवर में वह सुविधापूर्ण तरीके से रहेगी, लेकिन एक ही रात में मछली के लिए सवरोवर भी छोटा पड़ने लगा।
तब राजा समझ गए कि यह कोई साधारण मछली नहीं है। उन्होंने उस मछली के समक्ष हाथ जोड़कर कहा कि मैं जान गया हूं कि निश्चय ही आप कोई महान आत्मा हैं। यदि यह बात सत्य है, तो कृपा करके बताइए कि आपने मत्स्य का रूप क्यों धारण किया है?
तब राजर्षि सत्यव्रत के समक्ष भगवान विष्णु अपने असली स्वरूप में प्रकट हुए और कहा कि हे राजन। हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। इस कारण जगत में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला गया है। मैंने हयग्रीव का अंत करने के लिए ही मत्स्य का रूप धारण किया है। आज से सातवें दिन भूमि जल प्रलय में डूब जाएगी। तब तक तुम एक नौका बनवा लो और समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीर तथा सब प्रकार के बीज लेकर सप्तर्षियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना। प्रचंड आंधी के कारण जब नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य रूप में तुम सबको बचाऊंगा। तुम लोग नाव को मेरे सींग से बांध देना। प्रलय के अंत तक मैं तुम्हारी नाव खींचता रहूंगा। उस समय भगवान मत्स्य ने नौका को हिमालय की चोटी से बांध दिया। उसे चोटी को नौकाबंध कहा जाता है।
प्रलय का प्रकोप शांत होने पर भगवान ने हयग्रीव का वध किया और वेदों को पुनः ब्रह्माजी को सौंप दिया। भगवान ने प्रलय समाप्त होने पर राजा सत्यव्रत को वेद का ज्ञान वापस दिया। राजा सत्यव्रत ज्ञान-विज्ञान से युक्त हो वैवस्वत मनु कहलाए। उक्त नौका में जो बच गए थे, उन्हीं से संसार में पुनः जीवन चला।
मत्स्य जयंती का महत्व
जो भक्त मत्स्य जयंती पर भगवान विष्णु के पहले अवतार मत्स्य की पूजा करता है उसे विशेष लाभ मिलता है। मत्स्य जयंती पर मत्स्य पुराण को सुनने और पढ़ने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस दिन जो इंसान मछलियों को आटे की गोली खिलाता है उसे पुण्य मिलता है। मत्स्य जयंती व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिलती है तथा मछलियों को नदी या समुद्र में छोड़ने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं तथा अपनी कृपा बरसाते हैं।