- मोक्षदा एकादशी कथा सुनने के बाद ही होता है व्रत पूर्ण
- भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज को बताया था इस व्रत का महत्व
- मोक्षदा एकादशी कथा श्रवण से पापकर्म हो जाते हैं नष्ट
मोक्षदा एकादशी पर व्रत-पूजन से मनुष्य को उसके पापकर्म से मुक्ति मिलती है। साथ ही इस दिन अनजाने में हुए किसी भी पाप कर्म से प्रायश्चित पाने के लिए व्रत जरूर करना चाहिए। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल एकादशी 25 दिसंबर को है। मोक्षदा एकादशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को दिया था और इस कारण ही इस एकादशी का महत्व और बढ़ जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत-पूजन के साथ कथा का श्रवण करने से हजार यज्ञ के समान पुण्य मिलता है। मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान दामोदर की तुलसी की मंजरी, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा करनी चाहिए। इस दिन व्रत करने के बाद रात्रि में जागरण कर श्री हरि का कीर्तन करने से पापकर्म नष्ट होते हैं। यही नहीं इस व्रत से पूर्वजों को भी पुण्यफल प्राप्त होते हैं। मोक्षदा एकादशी मुक्तिदायिनी है तो चलिए इस व्रत के साथ कथा का भी श्रवण करें।
मोक्षदा एकादशी के बारे में एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि, हे प्रभु आप मार्गशीर्ष एकादशी के महत्व और उसका नाम बताएं और यह भी बताएं कि इसकी कथा क्या है। साथ ही इस दिन किस देवता की पूजा करनी चाहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज से कहा कि, यह बहुत ही उत्तम प्रश्न है और इससे सुनने से आपका भी यश संसार में बढ़ेगा। भगवान ने बताया कि, मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने वाली है। इसलिए इसका नाम मोक्षदा एकादशी है। इस दिन दामोदर भगवान की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। तो धर्मराज आप इसकी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा का श्रवण करें।
भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि, एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज करते थे और उनके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। जब राजा का सपना टूटा तो उसे बहुत ही अचरज हुआ कि उसके पिता नरक में कैसे हैं।
सुबह होते ही राजा विद्वान ब्राह्मण के पास गए और अपने स्वप्न का कष्ट सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट भोगते पाया है। उन्होंने मुझसे इस नरक से मुक्त कराने को कहा है। मैं यह सब देख बहुत बेचैन हूं और दुखी भी। मेरा मन बहुत अशांत है। ये सारे सुख मुझे नगण्य लग रहे हैं। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं हो रहा है। कृप्या कर मुझे इस यातना से निकलने और अपने पिता को नरक से मुक्त करने का उपाय बताएं।
राजा ने कहा, हे ब्राह्मण देवता इस दु:ख से मेरा तन-मन जल रहा है। कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि कोई उपाय बताएं जिससे मेरे पिता को नरक से मुक्ति मिले। तब ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन आप पर्वत ऋषि के आश्रम जाएं और उन्हीं से इसका उपाय पूछें।
राजा तुरंत मुनि के आश्रम पर गए और देखा कि आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन मुझे एक कष्ट खाए जा रहा है और राजा ने अपना स्वप्न मुनि को सुना दिया। पर्वत मुनि ने आँखें बंद कर सब ज्ञान कर आंखें खोलीं और बताया कि पूर्व जन्म में आपके पिता ने कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुएवे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है। यह व्रत मोक्ष प्रदान कर चिंताहरण माना गया है।