- इस मेले का आकर्षण का केंद्र रहता है पारंपरिक कृषि यंत्र
- ऋषि पंचमी के दिन लगता है मेला
- हर साल मोष्टा देवता के मंदिर में मेले का होता है आयोजन
Mostamanu Mela: उत्तराखंड अपनी सांस्कृति विरासत के लिए देश-विदेश में मशहूर है। सालों से चली आ रही परंपराओं को ग्रामीण आज भी बड़े उत्साह से मनाते आ रहे हैं। ऐसे ही है एक पारम्परिक मोष्टामाणू मेला। पिथौरागढ़ में हर साल ऋषि पंचमी में बारिश के देवता माने जाने वाले मोष्टामाणू के मंदिर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु अपने ईष्ट देवता की पूजा करने पहुंचते हैं।
आस्था और मनोरंजन को समेटता सोरघाटी पिथौरागढ़ के इस मेले में बारिश के देवता मोष्टामाणू को पूजा जाता है। मोष्टामाणू का मंदिर पिथौरागढ़ शहर की एक ऊंची चोटी पर है। मोष्टामाणू शब्द का मतलब है मोष्टादेवता का मंडप। सैकडों की संख्या में पहुंचने वाले श्रद्धालु ही मेले के महत्व को बयां करते हैं। मेले के अवसर पर मोष्टा देवता का रथ भी निकलता है।
लोगों को मानना है कि सादियों पहले इस क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा था जिससे हाहाकार मच गया था, अकाल से परेशान स्थानीय लोगों ने जब मोष्टा देवता की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया तब जाकर क्षेत्र में बारिश हुई। तभी से हर साल मोष्टा देवता के मंदिर में मेला का आयोजन होता आ रहा है। मेला का मुख्य आकर्षण देवता का डोला होता है, मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए जब डोला निकलता है तो डोले को कंधा देने के लिए भक्तों में होड़ मच जाती है।
मोष्टामाणू मेले में शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। लोगों का मानना है कि सदियों से चल आ रहा यह मेला लोगों को एकता के सूत्र में बांधने का एक बेहतरीन ज़रिया है। मेले का एक अकर्षण कृषि यंत्र भी है, पहाड़ी क्षेत्र में किसानी कर रहे ग्रामीण मेले से पारंपरिक कृषि यंत्र खरीदते हैं, जिससे मेले में पहाड़ के कृषि जीवन की भी झलक देखने को मिलती है। हालांकि कृषि यंत्र के साथ-साथ स्थानीय फल-फूल, किंरगाल की टोकरियां, चटाइयां, बर्तनों आदि वस्तुओं की मेले में खरीद होती है।
बता दें कि सरकार ने मेले को अब तीन दिन का कर दिया है लेकिन असल पारम्परिक मेला ऋषि पंचमी के दिन ही होता है। मोस्टामाणू का यह पौराणिक मंदिर साढ़े छह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
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