- नवरात्रि में सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है
- हिंदू धर्म में देवी के इस रूप को वीरता का प्रतीक माना जाता है
- मां दुर्गा ने दुष्टों का विनाश करने के लिए कालरात्रि का स्वरूप लिया था
Navratri 2021 7th Day, Maa Kalratri Vrat Katha In Hindi : नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। पूजा के सातवें दिन कालरात्रि की पूजा अर्चना पूरी विधि विधान से की जाती हैं। धर्म के अनुसार माता का इसी दिन नेत्र खोला जाता है। इस स्वरूप में मां का शरीर काला सिर के बाल बिखरे और गले में मुंड की माला पहने दिखाई देती हैं। कालरात्रि की पूजा-अर्चना काल के बुरे प्रकोप से बचाता है।
हिंदू शास्त्र के अनुसार कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे हमेशा के लिए खुल जाते हैं। मां के एक अक्षर का मंत्र कानों में पड़ने से दुरात्मा भी मधुर वाणी बोलने वाला वक्ता बन जाता हैं। नवरात्रि के सातवें दिन से ही महिलाएं माता को सोलह शृंगार की चीजें चढ़ाना शुरू कर देती हैं। मां दुर्गा को काली का रूप क्यों लेना पड़ा- जानें इसकी पौराणिक कथा।
Maa Kalratri Vrat Katha/Kahani, मां कालरात्रि की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज जब सभी देवताओं को पराजित कर उनके राज्य को छीन लिया, तब सभी देवता दानों की शिकायत लेकर महादेव जी के पास गए। भगवान शिव शंकर ने अपने पास आए हुए सभी देवतागण से उनके आने का कारण पूछा। तब देवता ने रक्तबीज के किए गए अत्याचारों को त्रिलोकीनाथ से कह सुनाया।
यह सुनकर भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से अनुरोध किया कि हे देवी तुम तुरंत उस राक्षस का संहार करके देवताओं को उनके राजभोग वापस दिलाओं। तब देवी पार्वती ने वहां साधना किया। माता के साधना की तेज से कालरात्रि उत्पन्न हुई। जब मां दुर्गा रक्तबीज का वध कर रहे थी, उस वक्त रक्तबीज के शरीर से जितना खून धरती पर गिरता था, उससे वैसे ही सैकड़ों दानव उत्पन्न हो जाते थे।
तब मां दुर्गा ने कालरात्रि से उन राक्षसों को खा जाने का निवेदन किया। तब मां कालिका ने रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही उसे अपने मुंह में लेना शुरू कर दिया। इस तरह से मां कालिका रणभूमि में असुरों का गला काटते हुए गले में मुंड की माला पहनने लगी। इस तरह से रक्तबीज युद्ध में मारा गया। मां दुर्गे का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है।