- मां कालरात्रि देवी भगवती का सातवां स्वरूप हैं। इनका दूसरा नाम शुभंकारी देवी भी है।
- नकारात्मक शक्तियां माता के नाममात्र से हो जाती हैं भयभीत।
- माता की चारों भुजाओं में मुंड की माला और अस्त्र शस्त्र हैं विराजमान।
Navratri 2021 7th Day Maa Kalratri Puja Vidhi and Mantra : नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। मां कालरात्रि देवी भगवती का सातवां स्वरूप हैं। मां कालरात्री का स्वरूप अत्यंत विकराल है, यह देवी दुर्गा के विनाशकारी अवतारों में से एक है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली और काल से रक्षा करने वाली देवी कालरात्रि दानवी शक्तियों का विनाश करती हैं। नकारात्मक शक्तियां माता के नाममात्र से ही भयभीत हो जाती हैं। कालरात्रि की अराधना से भक्त हर प्रकार के भय से मुक्त होता है और समस्त समस्याओं का निवारण होता है। सदैव शुभ फल देने के कारण माता को शुभंकारी देवी भी कहा जाता है।
मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत विकराल है, उनके शरीर का रंग अंधकार के समान काला है। माता के बाल बिखरे हुए हैं और गले में मुंडियों की माला है। माता के तीनों नेत्रों से तेज प्रकाश वाली किरणे निकलती हैं, जो अंधकार का नाश करती हैं। माता की चारो भुजाओं में मुंड की माला और अस्त्र शस्त्र विराजमान है। ऐसे में इस लेख के माध्यम से आइए जानते हैं नवरात्रि के छठे दिन मां कालरात्रि की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र, आरती और पौराणिक कथा के बारे में।
Maa Kalratri Puja Vidhi, मां कालरात्रि पूजा विधि
नवरात्रि के सातवें दिन रोजाना की तरह सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद माता को पंचामृत से स्नान करवाएं तथा गणेश पूजन व कलश पूजन के बाद मां कालरात्रि को की पूजा आरंभ करें। सर्वप्रथम कलश पूजन के साथ अग्यारी लौंग का जोड़ा आदि अर्पित करें। तथा प्रतिदिन की भांति माता को फल, फूल, अक्षत, सुपारी, कुमकुम, सिंदूर आदि चढ़ाएं। इसके बाद धूप दीप कर मां कालरात्रि का पाठ करें। फिर आरती करें। ध्यान रहे पूजा के दौरान सिर खुला नहीं होना चाहिए खासकर महिलाएं अपने बालों को खुला ना रखें। इस दिन ब्राम्हणों को दान करने से आकस्मिक संकटों का नाश होता है और समस्त समस्याओं का निवारण होता है।
Maa Kalratri Puja Mantra, मां कालरात्रि पूजा मंत्र
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम।।
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघ: पार्णिकाम् मम।।
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदशं कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्।।
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृद्धिदाम्।।
ओम कालरात्र्यै नम:।
ओम फट् शत्रुन साघय घातय ओम।
ओम ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।
ओम ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।
एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ओम।।
Maa Kalratri Aarti lyrics, मां कालरात्रि आरती लिखित
कालरात्रि जय जय महाकाली।
काल के मुंह से बचाने वाली।।
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतारा।।
पृथ्वी और आकाश पर सारा।
महाकाली है तेरा पसारा।।
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली।।
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं नजारा।।
सभी देवता सब नर नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी।।
रक्तंदाता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई दुख ना।।
ना कोई चिंता रहे बीमारी
ना कोई दम ना संकट भारी।।
उस पर कभी कष्ट ना आवे।
महाकाली मां जिसे बचावे।।
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि मां तेरी जय।।
Maa Kalratri vrat katha, मां कालरात्रि की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार शुंभ निशंभ नामक दैत्यों ने अपने बल के मग्न में चूर होकर इंद्रदेव से स्वर्ग छीन लिया और सभी देवी देवताओं को परेशान करने लगे। सभी देवी देवता शुंभ निशुंभ के अत्याचार से परेशान होकर मां भगवती का स्मरण करने लगे, कि देवी भगवती ने उन्हें वरदान दिया था कि मैं संपूर्ण विपत्तियों को नष्ट कर तुम्हारी रक्षा करूंगी। सभी देवी देवताओं को चिंतित देख मां दुर्गा ने शुंभ निशुंभ को मौत के घाट उतार दिया। जब मां दुर्गा ने दैत्यराज रक्तबीज का वध किया तो उसके शरीर से से निकलने वाले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। इसे देख मां भगवती ने अपना सातवां स्वरूप कालरात्रि का रूप धारण किया और दैत्यराज रक्तबीज को मौत के घाट उतार दिया। तथा उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को माता ने जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया। माता का यह स्वरूप अत्यंत विकराल है।