- नवरात्रि के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा का है विधान।
- महिषासुर का वध करने के लिए मां दुर्गा ने लिया था कात्यायन ऋषि के घर जन्म।
- विधि विधान से मां कात्यायनि की पूजा अर्चना करने से होती है सुयोग्य वर की प्राप्ति।
Navratri 2021 6th Day Maa Katyayani Puja Vidhi and Mantra: 7 अक्टूबर 2021, बृहस्पतिवार से नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। आज नवरात्रि का छठवां दिन है, नवरात्रि के छठवें दिन माता के छठे स्वरूप मां कात्यायनी देवी की पूजा का विधान है। इस दिन विधि विधान से माता की पूजा अर्चना करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। तथा सभी कष्टों का नाश होता है। मां कात्यायनी देवी का जन्म कात्यायन ऋषि के आश्रम में हुआ था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कात्यायन ऋषि के तप से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उनके घर जन्म लिया था। माता की चारो भुजाओं में अस्त्र शस्त्र औऱ कमल का फूल विराजमान है। मां कात्यायनी बृज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इन्हें युद्ध की देवी भी कहा जाता है।
माता को पीला रंग अत्यंत प्रिय है, इस दिन पीला वस्त्र धारण कर माता को पीला फूल अर्पित करने और मिठाई का भोग लगाने से मां जल्दी प्रसन्न होती हैं। वहीं वैवाहिक जीवन के लिए भी माता की पूजा फलदायी होती है। यदि कुण्डली में विवाह के योग छीण हो तो भी विवाह हो जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं नवरात्रि के पांचवे दिन मां कात्यायनी देवी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, पूजा मंत्र, आरती और पौराणिक कथा के बारे में संपूर्ण जानकारी।
कात्यायनी देवी पूजा विधि (Maa Katyayani Puja Vidhi)
सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ और पीले वस्त्र धारण करें। फिर गंगाजल से माता को स्नान कराएं और गणेश पूजन व कलश पूजन के साथ मां कात्यायनी देवी की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले माता को पीले वस्त्र, फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर, पान, सुपारी आदि अर्पित करें और माता का श्रंगार कर मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद धूप दीप अगरबत्ती कर मां कात्यायनी देवी की व्रत कथा का पाठ करें। अंत में आरती करें। बता दें बिना आरती के माता की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती इसलिए आरती करना ना भूलें।
मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए:
जिन कन्याओं की कुण्डली में विवाह का योग नहीं बन रहा है या बार बार शादी विवाह में बाधा उत्पन्न हो रही है उन्हें कात्यायनी देवी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार गोपियों ने भी कृष्ण जैसे वर की प्राप्ति के लिए मां कात्यायनी देवी की अराधना की थी। मां कात्यायनी देवी की पूजा करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है और शादी विवाह में आ रही सभी अड़चनें दूर होती हैं।
मां कात्यायनी देवी मंत्र
ओम देवी कात्यायन्यै नम:।
मां कात्यायनी प्रार्थना मंत्र:
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्जलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी।।
स्तुति मंत्र का करें जाप (Maa Katyayani Stuti)
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायानी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां कात्यायनी कवच मंत्र (Maa Katyayani Mantra)
कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी।।
कल्याणी ह्रदयम् पातु जया भगामालिनी।।
मां कात्यायनी देवी आरती (Maa Katyayani Aarti in Hindi)
जय कात्यायनी मां, मैया जय कात्यायनी मां।
उपमा रहित भवानी, दूं किसकी उपमां।।
मैया जय कात्यायनी मां।।
गिरिजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हां।
वर फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हां।।
मैया जय कात्यायनी मां।।
कर शशांक शेखर तप, महिषाशुर भारी।
शासन कियो सुर पर, बन अत्याचारी।।
मैया जय कात्यायनी मां।।
त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुंचे अच्युत गृह।
महिषासुर बध हेतु, सुर कीन्हौं आग्रह।।
मैया जय कात्यायनी....
सुन पुकाप देवन मुख, तेज हुआ मुखरित।
जन्म लियो कात्यायनि, सुर नर मुनि के हित।
मैया जय कात्यायन, नाम का
मैया जय कात्यायनि...
आश्विन शुक्ल को महिषासुर मारा।
नाम पड़ा रणचण्डी, मरणलोक न्यारा।।
मैया जया कात्यायनि....
दूजे कल्प संहारा, रूप भद्रकाली।
तीजे कल्प में दुर्गा, मारा बलशाली।।
मैया जय कात्यायनि...
दीन्हौं पद पार्षद निज, निज जगत जननि माया।
देवी संग महिषासुर, रूप बहुत भाया।।
मैया जय कात्यायनि....
उमा रमा ब्रन्हाणी, सीता श्रीराधा।
तुम सुर-मुनि मन मोहनि, हरिये भव बाधा।।
मैया जय कात्यायनि.....
जयति मङ्गला काली, आद्या भवमोचनि।
सत्यानन्दस्वरूपणि, महिषासुर-मर्दनि।।
मैया जय कात्यायनि....
जय जय अग्निज्वाला, साध्वी भवप्रीता।
करो हरण दुख मेरे, भव्या सुपुनीता।।
मैया जय कात्यायनि....
अघहरिणि भवतारिणि, चरण-शरण दीजै।
ह्रदय निवासिनि दुर्गा कृपा-दृष्टि कीजै।।
मैया जय कात्यायनि....
ब्रह्मा अक्षर शिवजी, तुमको नित ध्यावै।
करत अशोक नीराजन, वाञ्छितफल पावै।।
मैया जय कात्यायनि...
मां कात्यायनी देवी की पौराणिक कथा (Maa Katyayani Katha)
महर्षि कात्यायन की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां आदिशक्ति ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेने का निश्चय किया था। कुछ समय बाद धरती पर महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बढ़ गया था और सभी देवी देवता उसके कृत्य से परेशान हो गए थे, तब ब्रम्हा, विष्णु और भगवान शिव के तेज से माता ने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया।
माता का पालन पोषण भी कात्यायन ऋषि ने किया, इसलिए माता को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। अष्टमी कृष्ण चतुर्थी को जन्म लेने के बाद शुक्ल सप्तमी अष्टमी और नवमी तीन दिनों तक कात्यायन ऋषि ने माता की पूजा अर्चना किया। तथा माता ने दशमी के दिन महिषासुर का वध किया। माता का स्वरूप अत्यंत दिव्य है और शरीर स्वर्ण के समान चमकीला है। माता की चारो भुजाओं में अस्त्र शस्त्र और कमल का फूल विराजमान है।