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Navratri 2020: देवी का स्वरूप होती हैं कन्याएं, इस दिन की जाती है इनकी विशेष पूजा

Navratri navKanya Puja, नवरात्रि कन्या पूजा
Updated Mar 27, 2020 | 08:28 IST

Kanya Pujan: कन्या पूजन के बिन नवरात्रि की पूजा पूरी नहीं होती। नौ दिन का व्रत करने वाले नवमी को और पहला और आखिरी नवरात्रि का व्रत रखने वाले अष्टमी को कन्या पूजा करते हैं।

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Navratri navKanya Puja, नवरात्रि कन्या पूजाNavratri navKanya Puja, नवरात्रि कन्या पूजा
Navratri Kanya Puja, नवरात्रि कन्या पूजा
मुख्य बातें
  • उम्र के अनुसार कन्याएं देवी का स्वरूप मानी गई हैं
  • कन्या पूजा के साथ लांगूर पूजा भी जरूरी होती है
  • दो से दस साल की कन्याओं की पूजा करनी चाहिए

नवरात्रि के अंतिम दो दिन में कन्याओं को पूजा जाता है। अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्याओं को उनकी उम्र के अनुसार देवी का स्वरूप मान कर पूजा जाता है। नवरात्रि में वैसे तो कई बार पूरे नौ दिन कन्या की पूजा की जाती है, लेकिन जो पूरे नौ दिन ऐसा नही करते वह अष्टमी या नवमी को कन्या जरूर जिमाते हैं।

कन्या पूजा यदि नौ दिन करनी है तो तीन, पांच या सात कन्याएं जिमानी चाहिए, लेकिन अष्टमी या नवमी को पूजा की जाती है तो कम से कम 9 कन्याओं का होना जरूरी माना जाता है। साथ में एक लांगूर भी होता है। कन्याओं आदर-सत्कार के साथ घर बुला कर उन्हें आसन दिया जाता है। सबसे पहले उनके पैर धोए जाते हैं और आलता लगा कर उनके पैर छुए जाते हैं। फिर कुमकुम लगा कर उन्हें माला पहनाई जाती है। उसके बाद भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही उन्हें उपहार और दक्षिणा भी दी जाती है।

उम्र के आधार पर देवी का विभिन्न स्वरूप मानी गई हैं कन्याएं

श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में कन्याओं को उम्र के आधार पर उन्हे विभिन्न देवी का स्वरूप माना गया है। नवजात से दो वर्ष की उम्र की कन्या को कन्याकुमारी का रूप माना गया है। तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति का स्वरूप माना गया है। चार साल की कन्या को कल्याणी का स्वरूप, पांच साल की कन्या को रोहिणी,  छह साल की कन्या को कालिका, सात साल की कन्या को चण्डिका, आठ साल की कन्या को शांभवी और नौ साल की कन्या को दुर्गा का रूप माना गया है। वहीं दस साल की कन्या सुभद्रा का रूप होती है।

बालक का पूजा में होना है जरूरी

नवरात्रि पूजा में कन्या के साथ बालक को भी पूजा जाता है। ये बालक बटुक भैरव का रूप होता है और इसे लांगूर भी कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि देवी की सेवा के लिए भगवान शिव ने हर शक्तिपीठ के साथ एक-एक भैरव को रखा है। यही कारण है कि जब देवी की पूजा होती है तो भैरव की पूजा भी जरूरी है। किसी शक्‍ति पीठ में मां के दर्शन के बाद भैरव के दर्शन नहीं किए जाएं तो मां के दर्शन अधूरा माना जाता है।

दो से दस साल की कन्या को पूजा में करें शामिल

नवरात्रि में दो से दस साल की कन्या की पूजा करना सबसे श्रेयस्कर मना गया है। कन्याएं अव्यक्त ऊर्जा का भंडार होती है और उनकी पूजा करना ऊर्जा को सक्रिय करता है और देवियों का आशीर्वाद मिलता है। 

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