नई दिल्ली : नवरात्रि के नौ दिन जहां मां के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, वहीं इनके समापन पर कन्या पूजन करने की परंपरा है। इसका एक प्रचलित नाम कंजक भी है और इसे अष्टमी या फिर नवमी पर किया जाता है। इस दिन छोटी बच्चियों को देवी का रूप मान कर पूजा जाता है। साथ ही इनके चरण छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। माना जाता है कि उनका आशीर्वाद मां की कृपा लेकर आता है। इसलिए जो लोग नवरात्र में व्रत नहीं भी रखते, वे भी कन्या पूजन जरूर करते हैं।
कन्या पूजन के साथ ही जरूरी है कि इसे पूरी विधि से किया जाए और इसके लिए बनाए गए नियमों का ध्यान रखा जाए। ऐसा न करने पर मां रुष्ट हो सकती हैं। कन्या पूजन की शुरुआत कन्याओं के चरण धोने से होती है। इसके बाद उनको भोजन भी पूरी श्रद्धा से कराना चाहिए। साथ ही उनसे आशीर्वाद भी झुककर लेना चाहिए। सत्य और समर्पण भाव से उनको माता ही मानकर उनके आशीर्वाद को स्वीकार करने की परंपरा चली आ रही है।
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जानें Navratri में Kanya Pujan की सही विधि
सुजीत महाराज कहते हैं कि कन्या पूजन के बिना नवरात्रि पूजा के फल की प्राप्ति नहीं होती है। नवरात्र शक्ति उपासना का पर्व है।देवी पूजा के साथ साथ प्रतीक रूप में कन्या को देवी मानके उनके चरणों का पूजन करने से माता शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कंजक में 9 कन्याओं को जरूर बैठाएं।
- सर्वप्रथम कन्याओं का चरण फूल की थाली में जल में डालकर उसको धोएं। मान्यता है कि ऐसा करने से पापों का शमन होता है।
- फिर उनको तिलक लगाकर पंक्तिबद्ध बैठाएं। हाथ में रक्षासूत्र बांधें और उनके चरणों में पुष्प अर्पित करें।
- इसके पश्चात नई थाली (इसलिए कंजक में अक्सर थाली या टिफिन दिया जाता है) में कन्याओं को पूड़ी, हलवा, चना इत्यादि भोजन श्रद्धा पूर्वक परोसें। फिर मिष्ठान और प्रसाद देकर कुछ द्रव्य और वस्त्र का दान करें।
- जब कन्याएं भोजन कर लें तो उन्हें शक्तिस्वरूपा देवी मानकर पुनः उनकी आरती करें और उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
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नवरात्र में जलाएं अखंड ज्योति
नवरात्रों में नौ दिनों तक देवी माता जी का विशेष श्रृंगार करना चाहिए। चोला, फूलों की माला, हार और नए कपड़ों से माता जी का श्रृंगार किया जाता है। वहीं नवरात्र में देशी गाय के घी से अखंड ज्योति जलाना मां भगवती को बहुत प्रसन्न करने वाला कार्य होता है। लेकिन अगर गाय का घी नहीं है तो अन्य घी से माता की अखंड ज्योति पूजा स्थान पर जरूर जलानी चाहिए।
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