- भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाते हैं कजरी तीज
- अंखड सौभाग्य और सुहाग के लिए रखती हैं निर्जला व्रत
- भगवान शंकर और देवी पार्वती के साथी होती है माता नीमड़ी की पूजा
भद्रपद महीने में आने वाली इस कजरी तीज को उत्तर भारत समेत मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान में बहुत बड़ा त्योहारा माना जाता है। सुहागिन महिलाएं तीज पर निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव और देवी गौरी और माता नीमड़ी देवी की पूजाकर अखंड सुहाग की कामना करती हैं। इस तीज को कई स्थानों पर सातुड़ी तीज भी कहते हैं।
मुख्यत: तीज मनाने के पीछे यही कारण है कि जिस तरह देवी पार्वती ने शिव को पाने के लिए 108 साल तपस्या की और उसके बाद उन्हें पाया था। उसी तरह महिलाओं का सुहाग भी अखंड रहे। भगवान शिव और पार्वती का दिव्य संघ भाद्रपद महीने के कृष्णा पक्ष के दौरान हुआ था, इसलिए इसदिन को कजरी तीज के रूप में मनाया जाता है। तो आइए जानें, तीज का महत्व और पूजा की संपूर्ण विधि।
कजरी तीज व्रत पूजा मुहूर्त
कजरी तीज का व्रत पांच अगस्त को रात 10:50 मिनट से प्रारंभ हो जाएगा क्योंकि इसी समय तृतीया तिथि आरंभ हो जाएगी, लेकिन व्रत अगले दिन सुबह 6 अगस्त को रखा जाएगा और व्रत मध्य रात्रि 12:14 बजे तक चलेगा।
जानें कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज का व्रत रखने से महिलाओं को अखंड सुहाग और सौभाग्य का वरदान मिलता है। इस व्रत को करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। देवी पार्वती और भगवान शिव की विशेष कृपा सुहागिनों को प्राप्त होती है।
ऐसे करें पूजा की पहले तैयारी
कजरी तीज पर देवी पार्वती और भगवान शिव के साथ कई जगह नीमड़ी माता की पूजा भी होती है। भगवान की पूजा के लिए सुहागिनों को शुद्ध मिट्टी से इनकी प्रतिमा बनानी चाहिए। अब मिट्टी और गोबर से घर में जहां पूजा करनी है, वहां की दीवार के किनारे तालाब की आकृति बनाएं और उस पर घी और गुड़ से पाल बांध दें। इसके बाद तालाब के पास नीम की टहनी को रोप दें। इसके बाद तालाब में कच्चा दूध और जल डालकर दीया प्रज्वलित करें।
इस विधि से करें कजरी तीज की पूजा
मिट्टी से बनाए भगवान शिव- देवी पार्वत और माता नीमड़ी को जल और रोली लगाने के बाद अक्षत चढ़ाएं। इसके बाद अनामिका उंगली से देवी पार्वती और माता नीमड़ी को सुहाग की सभी सामग्री चढ़ाएं। गहने और वस्त्र आदि भी अर्पित करें और इसके बाद इन गहनों में अपना प्रतिबिंब देखें। इसके बाद भोग चढ़ाएं और देवी की आरती और कजरी तीज की कथा पढ़ें। मान्यता है कि ऐसा करने से सुहाग, सुख-समृद्धि बनी रहती है। सुहागिनों को अपने व्रत को अगले दिन गाय को गुड़ खिलाने के बाद खोलना चाहिए।
कजरी तीज की पूजा उन कुंवारी लड़कियों को भी करना चाहिए जो विवाह योग्य हैं। इससे उन्हां मनचाहा सुयोग्य वर मिलता है।