- भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है परिवर्तनी एकादशी का व्रत
- शास्त्र के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा के दौरान करवट बदलते हैं
- ये हैं परिवर्तनी एकादशी की कथा (Parivartini Ekadashi vrat katha in hindi)
Parivartini Ekadashi 2022 Vrat Katha in Hindi : हिंदू पंचांग के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi vrat 2022) का व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस बार यह व्रत 6 सितंबर को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती है। शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में करवट बदलते है। परिवर्तिनी एकादशी को पार्श्व एकादशी (Parsva Ekadashi 2022) भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति मिलती है। यदि आप भी परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखने की सोच रहे है, तो उस दिन पूजा करने के बाद इस कथा (Parivartini Ekadashi vrat kahani) को अवश्य पढ़ें। ऐसी मान्यता है कि कथा को पढ़ने से भगवान विष्णु बेहद प्रसन्न होते है।
Parivartini Ekadashi vrat katha in hindi
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी की कथा (Parivartini Ekadashi vrat story) भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को बताई थी। कथा के अनुसार (Parivartini Ekadashi 2022 vrat katha) त्रेता युग में दैत्यराज बली भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसके पराक्रम से इंद्र और अन्य देवतागण भी डर गए थे। उसने इंद्रलोक पर कब्जा कर लिया था। उसके डर से सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। वहां जाकर उन्होनें दैत्य राजबली के भय से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना को सुनकर भगवान विष्णु ने उस वक्त वामन अवतार धारण किया।
वामन रूप धारण करके भगवान विष्णु राजा बलि के पास गए और उन्होंने राजा से तीन पग भूमि दान में मांगी। भगवान विष्णु के वामन रूप को देखकर राजा बलि ने तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। राजा के वचन देने के बाद भगवान विष्णु ने वामन रूप में अपना विकराल रूप धारण कर लिया। उन्होंने एक पग में स्वर्ग, दूसरे पग में धरती नाप दी। तीसरे पग रखने के लिए वामन देवता को जगह नहीं थी, तब उन्होंने राजा बलि से कहा कि मैं अपना तीसरा पाठ कहां रखूं। भगवान का यह वचन सुनकर राजा बलि ने कहा हे प्रभु! तीसरा पाग आप मेरे मस्तक पर रख दें।
यह कह कर उसने अपना सिर वामन देवता के सामने झुका दिया। तब वामन देवता ने अपना तीसरा पग राजा बलि के सिर पर रख दिया। उसकी इस भक्ति को देखकर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे पाताल लोक भेज दिया। इस तरह से भगवान विष्णु के वामन रूप धारण करने का उद्देश्य पूरा हुआ और देवताओं को भी राजा बलि के आतंक से मुक्ति मिल गई। तभी से यह व्रत संसार में विख्यात हो गया। इस व्रत को लेकर भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा था कि जो व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा करता है, उनको समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है।