- पितृपक्ष की पंचमी को भरणी नक्षत्र पड़ता है
- भरणी नक्षत्र के देवता यमराज माने गए हैं
- रिश्ते के आधार पर श्राद्ध का अलग-अलग दिन निर्धारित है
पंचमी को भरणी नक्षत्र पड़ता है, इसलिए इस श्राद्ध का नाम महाभरणी है। इसे भरणी श्राद्ध भी कहा जाता है। पितृ पक्ष में पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष में पितरों के श्राद्ध के लिए अलग-अलग दिन भी निर्धारित है, जैसे पिता या माता का श्राध, नाना-नानी आदि। इसी क्रम में पंचमी का श्राद्ध अविवाहित लोगों के लिए निर्धारित किया गया है।
इस दिन जो भी कुंवारे लोग मृत्युलोक चले जाते हैं, उनके लिए पिंडदान और ब्राह्मण भोज का आयोजन किया जाता है। कई जगह इसे पंचम श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। तो आइए महाभरणी श्राद्ध के बारे में विस्तार से जानें।
भरणी श्राद्ध क्या है / What is Bharni Shradh
भरणी नक्षत्र में इस श्राद्ध के पड़ने के कारण इसका नाम भरणी श्राद्ध पड़ा है। भरणी नक्षत्र के देवता यमराज को माना गया है। यमराज क्योंकि भरणी का देवता हैं इसलिए महाभरणी श्राद्ध की महत्ता बढ़ जाती है। भरणी श्राद्ध करने से, गया में किये गये श्राद्ध के समान पुण्यलाभ मिलता है। मान्यता है कि महाभरणी श्राद्ध पितरों को कहीं भी किया जा सकता है। कई बार पंचमी की जगह भरणी नक्षत्र तृतीया या चतुर्थी को भी पड़ जाता है। ऐसे में जिस भी तिथि को यह पड़े उस दिन ही भरणी श्राद्ध करना चाहिए। इसलिए भरणी श्राद्ध किसी एक तिथि से नहीं जोड़ सकते है। इस बार ये श्राद्ध पंचमी को पड़ रहा है।
सभी के श्राद्ध का अलग-अलग दिन है निर्धारित
रिश्ते के आधार पर श्राद्ध का अलग-अलग दिन निर्धारित है। जैसे पिता का श्राद्ध अष्टमी, माता का नवमी को किया जाता है। उसी तरह द्वादशी को साधु-संयासी और चतुर्दशी को अकाल मृत्यु वालों का किया जाता है। जिनकी मृत्यु अविवाहित रहते हो जाती है उनका श्राद्ध महाभरणी पर होता है। वहीं जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञान न हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या पर किया जाता है।
जानें, महाभरणी श्राद्ध का महत्व
मान्यता है कि जन्म-मरण चक्र में मृ्त्यु और पुन: जन्म उत्पति का कारकत्व भरणी नक्षत्र के पास ही होता है। इसलिए भरणी नक्षत्र के दिन श्राद्ध करने से पितरों को सदगति की प्राप्ति होती है। भरणी नक्षत्र में श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता को उत्तम आयु प्राप्त की होती है। भरणी नक्षत्र में ब्राह्मण को तिल और गाय दान करने का विधान है।
पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करते समय हमेशा शांत मन रखना चाहिए। क्रोध या बेमन से किया गए श्राद्ध का फल पितरों को प्राप्त नहीं होता। इसलिए पितरों को जितनी श्रद्धा और सम्मान से किया जाता है उतना ही आशीर्वाद वह देते हैं। पितरों के आशीर्वाद से सुख-शांति और तरक्की के रास्ते खुलते हैं। वंशवृद्धि होती है।