- धूप देने से देवता और पितृ दोनों ही प्रसन्न होते हैं
- धूप से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं
- पितृपक्ष में धूप गाय के गोबल के उपलों पर रख कर जलाना चाहिए
हिन्दू धर्म में धूप-दीप के प्रयोग के बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती। देवगण की पूजा के साथ ही पितृदेव की पूजा में भी धूप का महत्व बहुत होता है। अमूमन घरों में शाम के समय नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने के लिए भी धूप का प्रयोग होता है, लेकिन क्या आपको पता है कि धूप जलाने से आपके पारलौकिक सुख भी मजबूत होते हैं? यदि आप पितृपक्ष के दौरान चार तरह के धूप का प्रयोग करते हैं तो इससे आप पर पारलौकिक कृपा जरूर बनेगी।
पितरों, देवताओं को प्रसन्न करने के साथ ही वास्तु के लिहाज से भी घर में धूप जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। समान्यत: धूप को खाली भी जलाया जा सकता है, लेकिन पितृपक्ष में धूप को लकड़ी या गाय के उपले के ऊपर रखकर जलाना चाहिए। सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है।
पितृपक्ष में इन चार धूप को जरूर जलाएं
1.षोडशांग धूप : तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलाइची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल से मिलकर शोडशांग धूप बनता है। इसमें ये सोलह प्रकार के धूप होते हैं। तंत्रशास्त्र के अनुसार इस धूप का प्रयोग करने से आकस्मिक दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। वहीं यदि कोई घर में सुख-शांति चाहता है तो चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र को समान मात्रा में मिला कर इस धूप का प्रयोग करना चाहिए। श्राद्ध के दिनों में भोजन से पूर्व थोड़ा सा भोजन गाय के गोबर से बने उपले पर रख कर अग्नि को समर्पित कर दें। इस क्रिया को वैश्वदेव यज्ञ के समान माना गया है।
2.गुड़ और घी की धूप : पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए ही नहीं खुद के पारलौकिक सुख के लिए भी गुड़ और घी का धूप जलाना चाहिए। इसके लिए गाय के गोबर से बने उपले पर इन दोनों सामग्री को रख कर जला दें। जब धूप सुलग जाए तो आप इसके किनारों पर अंगूठे से जल अर्पण करें। अंगुली से देवताओं को और अंगूठे से धूप पितरों को मिलता है। चाहे तो इसमें पके चावल भी मिला सकते हैं। जल अर्पण करते समय पितरों का ध्यान करें और उनसे सुख-शांति की कामना करें। इस धूप से पितृ तृप्त होकर मुक्त हो जाते हैं तथा पितृदोष का समाधान भी होता है। गुड़-घी की धूप- इसे अग्निहोत्र सुगंध भी कहा जाता है।
3.गुग्गुल-कर्पूर धूप : गाय के गोबर से बने उपले को जला कर उस पर गुग्गुल डाल दें। जब धूप सुलग जाए तो पूरे घर में इसे फैलाएं। यह धूप देव और पितृ दोनों के लिए ही उत्तम होती है। गुग्गल की सुगंध मानसिक शांति प्रदान करने वाली होती है और माना जाता है इससे नाकरात्मक ऊर्जाएं भी शांत हो जाती हैं।
4. लोबान की धूप : लोबान को सुलगते हुए उपले पर रखकर जलाना चाहिए। लोबान जलाने से पारलौकिक शक्तियां आकर्षित होती है। इसलिए इसे जब भी आप घर में जलाएं सूर्य उबने से पूर्व ही जलाएं या सूर्य डूबने से पूर्व जलाएं। पितृपक्ष में लोबान जलाया जा सकता है,क्योंकि इस पक्ष में मृत आत्माएं धरती पर होती हैं और जब उन्हें ये खूशबु मिलती है तो वह प्रसन्न होती हैं और वापस अपने लोक लौट जाती हैं।
धूप से मन, शरीर और घर में शांति की वास होता है। रोग और शोक मिटते हैं। वहीं गृहक्लेश और आकस्मिक दुर्घटना से बचाव होता है। धूप देने से देवता और पितृ प्रसंन्न होते हैं।