- पंचबलि का मतलब होता है पितरों के लिए पांच लोगों को भोज खिलाना
- पंचबली में ब्राह्मण के अलावा गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी शामिल है
- इन सभी प्राणियों के मुख से सीधे पितरों को भोजन मिलता है
श्राद्ध पितरों के निमित किया जाता है और उनके ही निमित भोज भी कराया जाता है। मान्यता है कि जो कुछ भी पितरों के नाम पर उनके वंशज पितृपक्ष में करते हैं, वह सब उनके पितरों को मिलता है, लेकिन यह दान और भोज उन तक किस माध्यम से पहुंचता है, इसे जान लेना चाहिए। यानी जब भी श्राद्ध का भोज कराएं, उसे पांच स्थान या पांच प्राणियों के पास जरूर रखें।
पितरों के तर्पण और पिंडदान के साथ ही भोज का भी बहुत महत्व होता है। इसलिए आपका पंचबलि कर्म के बारे में जानना जरूरी है। तो आइए आपको इससे जुड़ी सभी बातों से परिचित कराएं।
श्राद्ध का समय तरीका भी जानें
श्राद्ध हमेशा दक्षिण दिक्षा की ओर मुख कर करना चाहिए और भोजन भी दक्षिण दिशा में ही परोसना चाहिए। श्राद्ध हमेशा कुतप बेला में करना चाहिए और ये समय दिन के अपरान्ह 11:36 मिनिट से 12:24 मिनिट के बीच ही होता है। इसलिए इसी समय पितृगणों के निमित्त धूप डालकर, तर्पण, दान व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
क्या है पंचबलि कर्म
पंचबलि कर्म का मतलब है, ब्राह्मण के अलावा चार अन्य प्राणियों के लिए पितरों के नाम पर भोजन खिलाना। पंचबलि में गाय, कुत्ता, चींटी और कौवा आते हैं। इन पांच लोगों के लिए पांच स्थान पर भोज रखना चाहिए। यहां पंचबलि का मतलब होता है पांच लोगों के भोज से।
- प्रथम गौ बलि: घर से पश्चिम दिशा में गाय को महुआ या पलाश के पत्ते पर रखकर भोज देना चाहिए। भोज देते हुए 'गौभ्यो नम:' कहकर प्रणाम करें।
- द्वितीय श्वान बलि: पत्ते पर भोजन रखकर कुत्ते को भोजन कराना चाहिए। कोशिश करें कि ये कुत्ता दक्षिण दिशा की ओर मुख कर खाना खाए।
- तृतीय काक बलि: कौऐ के लिए छत पर या भूमि पर रखकर भोज देना चाहिए।
- चतुर्थ पिपलिकादि बलि: चींटी, कीड़े-मकौड़ों आदि के बिल के आगे भोजन का चूरा रखना चाहिए।
- पंचम ब्राह्मण भोज : ब्राह्मण भोज घर पर कराएं और महुए या पलाश के पत्ते पर उन्हें भोज परसें।
श्राद्ध यदि विधिवत किया जाए तो वह पितरों तक निश्चित रूप से पहुंचता है। मान्यता है कि इन पंचबलि के मुख से सीधे पितरों को भोजन मिलता है।