- राधा अष्टमी के दिन हुआ था राधा जी की प्राकट्य
- जन्माष्टमी के 15 दिन बाद मनाई जाती है राधा अष्टमी
- भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के बिना अधूरी होती है राधा जी की पूजा
नई दिल्ली: राधा अष्टमी का दिन राधा जी के प्राक्ट्य का अवसर माना जाता है और इस वजह से लोग इसे राधा अष्टमी के नाम से भी जानते हैं। श्री राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से 15 दिन बाद ही अवतरित हुईं थी। वह न सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की प्रिया के रूप में जानी जाती हैं बल्कि हर जगह कृष्ण के साथ राधा का नाम भी जोड़ा जाता है। इसलिए जब भी राधा जी की पूजा होती है, भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी जरूरी होती है।
दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं इसलिए यदि किसी एक की पूजा की जाती है तो ये पूजा अधूरी रहती है। इस बार राधा अष्टमी के दिन कई शुभ संयोग बन रहे हैं, इसलिए ये दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा का उत्तम फल प्रदान करेगा।
राधा अष्टमी का जानें महत्व
राधा रानी संपूर्ण जगत को परम सुख और संतुष्टि प्रदान करती हैं। राधा रानी को मोक्ष देने वाली, सौम्य और संपूर्ण जगत की जननी माना जाता है। जिस तरह से राधा रानी बेहद संयमित और संतुष्ट रहीं उसी तरह से वह अपने भक्तों के अंदर भी ये गुण विकसित करती हैं।
जानें सर्व सिद्धि योग और अमृत सिद्धी योग
राधा अष्टमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5 बजकर 56 मिनट से दोपहर 1 बजकर 04 मिनट तक रहेगा और इसी समय अमृत सिद्धि योग भी बन रहा है। 26 अगस्त को सुबह 5 बजकर 56 मिनट से दोपहर 1 बजकर 04 मिनट तक यह योग रहेगा।
राधा अष्टमी का ये है शुभ मुहूर्त
- 25 अगस्त दिन मंगलवार को 06 बजकर 40 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू
- 26 अगस्त दिन बुधवार को अष्टमी तिथि 02 बजकर 12 मिनट तक
राधा अष्टमी की पूजा के बारे में मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म पर की गई पूजा के बाद इस पूजा को जरूर करना चाहिए। तभी जन्माष्टमी पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
इस दिन होगी सभी ग्रहों की अनुकूल स्थिति
देवी राधा का जन्म द्वापर युग में हुआ था। मथुरा के रावल गांव में वृषभानु जी की यज्ञ स्थली के पास ही राधा जी का जन्म हुआ था और उनकी माता का नाम कीर्ति और पिता का नाम वृषभानु था। बताते हैं कि जिस समय राधा जी ने जन्म लिया था उस समय सभी ग्रह अपने अनुकूल स्थिति में थे। राधा अष्टमी के दिन चंद्रमा वृश्चिक राशि और अनुराधा नक्षत्र में रहेगा। सूर्य सिंह राशि में, बुध सिंह राशि में, राहु और शुक्र मिथुन राशि में, गुरु और केतु धनु राशि में, शनि अपनी स्वंय की राशि मकर में और मंगल अपनी मूल त्रिकोण राशि मेष में स्थित रहेंगे। जिसके अनुसार इस दिन ग्रहों की स्थिति काफी शुभ रहेगी। जिसके अनुसार आपको राधा कृष्ण की पूजा का कई गुना लाभ प्राप्त हो सकता है।
राधा रानी के इन मंत्रों का करें जाप
- तप्त-कांचन गौरांगी श्री राधे वृंदावनेश्वरी, वृषभानु सुते देवी प्रणमामि हरिप्रिया।
- ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नम:।
- ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै विद्महे गान्धर्विकायै विधीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।
- श्री राधा विजयते नमः, श्री राधाकृष्णाय नम:।
इस विधि से करें राधा अष्टमी पूजा
सूर्योदय से पूर्व स्नान कर के व्रत और पूजा का सर्वप्रथम संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थल पर एक पीढ़े पर आप लाल या पीला वस्त्र बिछा कर राधा-कृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद भगवान के समक्ष फूलों की माला चढ़ाएं और दोनों जनों को चंदन और रोली का टिका करें। इसके बाद तुलसी पत्र भी अर्पित करें और राधा रानी के मंत्रों का जप करें। राधा चालीसा और राधा स्तुति का पाठ करें। श्री राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण की आरती करें। आरती के बाद पीली मिठाई या फल का भोग लगाएं।