- शचि ने अपने पति इंद्रदेव की कलाई पर बाधी थी रक्षासूत्र
- माता लक्ष्मी ने राजा बली को भाई मानकर सावन पूर्णिमा के दिन बांधी राखी
- चीरहरण में द्रौपदी की लाज बचाकर श्रीकृष्ण ने निभाया रक्षा का वचन
Raksha bandhan Mythology: हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल सावन माह की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम और पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में कई पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं, इन्हीं में एक है रक्षाबंधन का त्योहार। लेकिन यदि यह सवाल किया जाए कि रक्षाबंधन का पर्व मनाने की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई तो इसे लेकर एक नहीं बल्कि कई प्रचलित कथाओं का जिक्र मिलता है। हिदूं धर्म में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे इतिहास या पौराणिक कथाएं जुड़ी होती है। रक्षाबंधन को लेकर भी कई पौराणिक कथाओं के बारे में बताया गया है। इनमें से तीन कथाएं सबसे अधिक प्रचलित हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में।
श्रीकृष्ण-द्रौपदी से जुड़ी रक्षाबंधन की कथा
इस कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने जब अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तब उनकी छोटी ऊंगली कट गई जिससे भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी से एक हिस्सा फाड़कर श्रीकृष्ण की ऊंगली पर बांध दिया। इसके बाद श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी मुंहबोली बहन बना लिया और हर संकट की परिस्थिति में उनकी रक्षा करने का वादा किया। अपने वचन के अनुसार श्रीकृष्ण ने चीरहरण के समय द्रौपदी की रक्षा की।
Also Read:Shani Dev Upay: काले तिल ही नहीं बल्कि इन आसान उपायों से भी प्रसन्न होंगे शनिदेव
शचि ने बांधी थी इंद्रदेव को राखी
रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन से जुड़ा है। लेकिन एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इंद्र की पत्नी शचि ने अपने पति की रक्षा के लिए उनके हाथों में रक्षा सूत्र बांधी थी। इस कथा के अनुसार वृत्रासुर नाम के एक असुर और देवराज इंद्र के बीच युद्ध होना था। तब इंद्रदेव की पत्नी शचि ने अपने तप से एक रक्षासूत्र तैयार किया। जिसे उन्होंने श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई पर बांध दी। इस रक्षा सूत्र के कारण है वृत्रासुर से इंद्र की रक्षा हुई और उन्हें युद्ध में विजय की प्राप्ति भी हुई।
माता लक्ष्मी ने राजा बली को बांधी राखी
रक्षाबंधन से जुड़ी कई पौराणिक कहानियों में एक कहानी यह भी है कि, एक बार जब राजा बली भगवान श्रीहरि विष्णु की कठोर उपासना की और उनसे ऐसा वरदान लिया कि वे सदैव उनके साथ रहेंगे। वरदान के अनुसार भगवान विष्णु बली के साथ रहने लगे। ऐसे में विष्णुजी की पत्नी माता लक्ष्मी परेशान हो गईं। उन्होंने राजा बली को अपना भाई बना लिया और श्रावण पूर्णिमा के दिन उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधी। बली से उपहार के रूप में उन्होंने अपने पति यानी विष्णुजी को वापस मांग लिया।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)