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Ram Mandir Bhoomi Puja: इतिहास में पहली बार रामजन्म भूमि पर नहीं ले जाया गया हनुमान निशान, क्‍यों बदला न‍ियम

Updated Aug 05, 2020 | 12:50 IST

ShrRam janmabhoomi Hanuman Chinh: इतिहास में पहली बार हनुमान चिन्ह रामजन्म भूमि पर नहीं लाया गया। इस बार हनामानगढ़ी में ही पहले 'हनुमान निशान' की पूजा हुई, जबकि हमेशा हनुमान चिन्ह रामजन्म भूमि पर लाया जाता था।

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Hanuman Nishan Puja change,हनुमान निशान पूजा में बदलाव
मुख्य बातें
  • हनुमान निशान की पहली बार हनुमानगढ़ी में ही हुई पूजा
  • विश्व हिंदू परिषद ने हनुमान निशान की पूजा की
  • कोरोना संक्रमण के कारण पूजा में हुआ ये ऐतिहासिक बदलाव

रामजन्म भूमि पर किसी भी पूजा से पूर्व 'हनुमान निशान' की पूजा करने का विधान है और ये पंरपरा सदियों से चली आ रही है, लेकिन इस बार इस पंरपरा में बहुत बड़ा बदलाव हुआ है। कोरोना संक्रमण के चलते इस बार हनुमानगढ़ी से 'हनुमान निशान' रामजन्म भूमि पर नहीं लाया गया, बल्कि हनुमानगढ़ी जा कर 'हनुमान निशान' की पूजा की गई है। श्रीराम जन्म भूमि पर मंदिर का शिलान्यास जहां देश के लिए आज ऐतिहासिक दिन बना है, वहीं श्रीराम की पूजा में हुए बदलाव का भी एक इतिहास बन गया है। 'हनुमान निशान' पहली बार जन्मस्थली पर लाकर नहीं पूजा गया, बल्कि हनुमनगढ़ी में पूजा गया।

प्रधानमंत्री मोदी पहुंचे हनुमान गढ़ी 

5 अगस्त यानी बुधवार के दिन अयोध्या में आज कुछ ऐसा ही माहौल दिखा, जैसे की भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद रहा था। अयोध्या नगरी फूलों से सजी नजर आई और देख कर ऐसा लगा जैसे आज ही दीवाली हो। भगवान श्रीराम के मंदिर का शिलान्यास पीएम मोदी ने किया। कोरोना संक्रमण काल में ये पूजा अपने आप में बहुत मायने रखती हैं, लेकिन भगवान की पूजा परंपरा में ये बदलाव भी इतिहास ही बन गया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने हनुमान गढ़ी पहुंचकर बजरंग बली के दर्शन क‍िए और राम मंद‍िर के श‍िलान्‍यास की इजाजत मांगी। यहां आने वाले वह देश के पहले प्रधान मंत्री हैं।

क्‍यों बदला गया हनुमान गढ़ी का न‍ियम
बता दें कि, कोरोनावायरस के चलते मंदिर के शिलान्यास पूजा में तमाम चीजें में बदलाव करना पड़ा है। जहां पूजा में कुछ सिमित लोगों को ही निमंत्रण दिया गया वहीं पूजा के एक बड़े नियम को भी बदलना पड़ा है। बता दें कि सदियों से ये परंपरा चली आ रही थी की श्रीराम जन्मभूमि पर जब भी कोई विशेष पूजा होती थी तब सबसे पहले हनुमानगढ़ी से 'हनुमान निशान' को श्रीराम जन्मभूमि पर लाकर उसकी विशेष पूजा की जाती थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।

कोरोनावायरस के चलते यह निर्णय लिया गया है। इस बार हनुमान निशान की विशेष पूजा हनुमानगढ़ी में ही संपन्न हुई। यह पूजा विश्व हिंदू परिषद ने कीी। इस पवित्र हनुमान निशान को श्री राम जन्मभूमि तक लाने में कम से कम 20 से 22 लोगों की आवश्यकता होती है और यही कारण है कि इस नियम में बदलाव किया गया है।

अयोध्‍या में क्‍यों खास है हनुमान गढ़ी मंद‍िर
अयोध्या की सरयू नदी के दाहिने तट पर ऊंचे टीले पर स्थित हनुमानगढ़ी सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। हनुमान गढ़ी मंदिर भगवान हनुमान के कुछ प्रमुख मंदिरों में से एक माना गया है। इस मंदिर में हनुमान जी की एक 6 इंच की मनमोहक प्रतिमा स्थापित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तजनों को 76 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। माना जाता है कि जब भगवान राम, हनुमान जी सहित लंका विजय करने के बाद अयोध्या आए थे तब से ही हनुमान जी यहां एक गुफा में रहने लगे थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। इसे राम भक्त हनुमान का घर भी कहा जाता है।

इस मंदिर परिसर के चारों कोनो में परिपत्र गढ़ हैं। मंदिर परिसर में मां अंजनी व बाल हनुमान की मूर्ति भी है। इसमें हनुमानजी  अपनी मां अंजनी की गोद में लेटे हुए हैं। अयोध्या में यह मान्यता है कि जो कोई भी व्यक्ति प्रभु श्रीराम के जन्म भूमि के दर्शन करने  से पहले पहले हनुमानगढ़ी में दर्शन करेगा तभी उसका श्रीराम का दर्शन सफल माना जाएगा।

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