- राम रक्षा स्तोत्र बुध कौशिकी ऋषि द्वारा रचित भगवान श्री राम की स्तुति है
- यह स्तोत्र सुरक्षा कवच की तरह काम करता है
- रामनवमी के दिन राम रक्षा स्तोत्र पढ़ने से श्री राम बहुत प्रसन्न होते हैं
Ram Navai 2022, Ram Raksha Stotra In Hindi: भारत में चैत्र रामनवमी का खास महत्व है। हिंदू शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम माता कौशल्या के गोद में आए थे। आपको बता दें भगवान विष्णु ने धरती पर 8 अवतार लिए हैं, उन्हीं 8 अवतार में से सातवां अवतार प्रभु श्री राम का हैं। श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। रामनवमी के दिन बड़ी धूमधाम से मां सिद्धिदात्री और प्रभु श्री राम की पूजा अर्चना की जाती हैं। इस वर्ष रामनवमी 10 अप्रैल को है। शास्त्र के अनुसार रामनवमी के दिन भगवान श्री राम का भजन कीर्तन एवं पाठ करने के साथ-साथ राम रक्षा स्त्रोत अवश्य पढ़ना चाहिए। इसे पढ़ने से प्रभु बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। आप चाहें, तो राम रक्षा स्तोत्र मंत्र का पाठ हर गुरुवार को भी कर सकते हैं। तो आइए रामनवमी से पहले प्रभु श्री राम को प्रसन्न करने वाले राम रक्षा स्तोत्र को जान लें।
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राम रक्षा स्तोत्र हिन्दी में (Ram Raksha Stotra in hindi)
इसे पढ़ने से पहले हाथ में जल लें
विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।
श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः।
सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः।
अब जल को जमीन पर छोड़कर प्रभु श्रीराम का ध्यान करें
अथ ध्यानम्:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।
वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम।
प्रभु राम रक्षा स्तोत्र:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्। एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्।।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्। जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं।।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्।।
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् । शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज:॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल:।।
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:। स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक:।।
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय:॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:। ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक:। पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु:।।
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत्। स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:। न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि:॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्। नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् । य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय:।।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् । अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम्॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:। तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक:॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्। अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु:॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्॥
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा । गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण:।।
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम:।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम:।
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:। अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय:॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् । स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर:।।
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्।।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्। वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्।।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम:।।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम। श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम। श्रीराम राम शरणं भव राम राम॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि। श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि। श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये।।
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:। स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने।।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्॥
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् । आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे। रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्। रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर।।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्॥॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु॥