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Ramadan 2020 roza rules: जानिए रमजान के महीना (रोजा) का महत्व और इसके नियम

Updated Apr 24, 2020 | 09:14 IST

Ramadan Roza rules: मुस्लिम कैलेंडर के मुताबिक नौवें महीने को पाक महीना माना जाता है जब पूरी दुनिया के मुसलमान पूरे महीने भर उपवास रखते हैं इसे रोजा कहते हैं। जानते हैं क्या है रोजा और इसके नियम-

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तस्वीर साभार:&nbspRepresentative Image
रमादान 2020 क्या है रोजा और इसके नियम
मुख्य बातें
  • मुस्लिम कैलेंडर के मुताबिक नौवें महीने को पाक महीना माना जाता है
  • इस दौरान पूरी दुनिया के मुसलमान पूरे महीने भर उपवास रखते हैं इसे रोजा कहते हैं
  • मुस्लिमों के लिए रोजा बेहद मायने रखता है क्योंकि इस्लाम धर्म में मान्यता है कि ऐसा करने से पिछले सारे पाप अल्लाह माफ कर देता है

मुस्लिम कैलेंडर के मुताबिक नौवें महीने को पाक महीना माना जाता है जब पूरी दुनिया के मुसलमान पूरे महीने भर उपवास रखते हैं। उनके महीने भर के उपवास को इस्लाम में रोजा कहा जाता है। मुस्लिम कैलेंडर चंद्रमा की स्थिति के अनुसार चलता है और हर साल रमजान या रमादान की तारीख चंद्रमा की स्थिति बदलने के अनुसार ही बदलती है। पूरी दुनिया के मुस्लिम इस दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को खाना खिलाते हैं। बता दें कि हर साल चांद के दीदार के साथ शुरू होने वाले माह-ए-रमजान की शुरुआत इस साल 25 अप्रैल से हो रही है।

इस पूरे महीने हर रोज वे रोजा रखते हैं यानि पूरे दिन का उपवास रखते हैं, उनका मानना है कि ऐसा करने से उनमें भूख, पीड़ा व दर्द सहने की शक्ति आती है और वे इस तरह से अपने अल्लाह या ईश्वर के और करीब जा पाते हैं। मुस्लिमों के लिए रोजा बेहद मायने रखता है क्योंकि इस्लाम धर्म में मान्यता है कि ऐसा करने से पिछले सारे पाप अल्लाह माफ कर देता है। रोजा के दौरान कई सख्त नियम का पालन करना पड़ता है जानते हैं क्या हैं वे नियम-

  1. उपवास की अवधि के दौरान या रोजा के दौरान रोजादार (जो उपवास रखते हैं) हर रोज सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक व्रत रखते हैं। ऐसा 29-30 दिनों तक करना पड़ता है। रोजा की समाप्ति ईद की तारीख पर निर्भर करता है। रोजादार अपना पहला भोजन सुबह में सूर्योदय के पहले करते हैं जिसे सहरी या सुहुर कहते हैं। शाम में सूर्यास्त के दौरान वे रोजा खोलते हैं यानि उस समय वे दिन का दूसरा भोजन करते हैं जिसे इफ्तार कहते हैं। बाकी पूरे दिन वे कुछ भी नहीं खाते ना ही पानी की एक बूंद लेते हैं।
  2. सभी वयस्क लोगों के लिए चाहे महिला हो या पुरुष हर किसी को रोजा रखना अनिवार्य है। केवल नवजात बच्चों की माएं, प्रेग्नेंट महिलाएं और माहवारी के दौरान की महिलाओं के लिए छूट है कि वे रोजा चाहे तो नहीं रख सकती हैं। जो बीमार हैं वे भी रोजा नहीं रख सकते हैं लेकिन उन्हें किसी गरीब या जरूरतमंद को खाना खिलाना चाहिए।
  3. रमादान की अवधि में मुस्लिमों को अपने अंदर के सारे नकारात्मक विचारों को त्याग देना होता है जैसे कि जलन की भावना, लड़ाई, द्वेष, कसम, गुस्सा, झूठ बोलना, गाली देना आदि त्याग देना पड़ता है। इस दौरान वे जान बूझकर उल्टियां नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा इस दौरान उन्हें स्मोकिंग, शराब का सेवन आदि सब छोड़ना पड़ता है।
  4. हालांकि फास्टिंग में भले ही कुछ खाने की इजाजत नहीं है लेकिन उन्हें नहाने की मुंह धोने की और ब्रश करने की इजाजत है और इस दौरान अगर पानी क कुछ बूंदें उनके मुंह में चली जाए तो इसे फास्टिंग नियमों का उल्लंघन नहीं माना जाता है। 
  5. मुस्लिम रोजा के दौरान दिन में पांच बार नमाज पढ़ते हैं। फज्र की नमाज (सुबह की नमाज) से लेकर इशा (रात की नमाज) की नमाज तक वे दिन भर में पांच बार नमाज पढ़ते हैं।

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