- इस वर्ष 19 फरवरी को मनाई जाएगी रथसप्तमी, सूर्योदय से पहले स्नान करने की है प्रथा
- हिंदू धर्म शास्त्रों में रथ सप्तमी को माना गया है बेहद अनुकूल, सूर्य जयंती के नाम से भी प्रचलित है यह दिन
- रथ सप्तमी के दिन पवित्र नदियों में करना चाहिए स्नान, आरोग्य जीवन का मिलता है वरदान
हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन रथ सप्तमी या सूर्य जयंती मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा और आराधना की जाती है। रथ सप्तमी को सूर्य सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, अचला सप्तमी और सूर्य जयंती के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कहा जाता है कि जिस दिन पहली बार भगवान सूर्य ने अपने तेज से पूरी धरती पर प्रकाश डाला था उस दिन को सूर्य जयंती के रूप में मनाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार रथ सप्तमी के दिन व्रत, स्नान, दान, जप, तप और पूजा का विशेष महत्व है। इस वर्ष 19 फरवरी को रथ सप्तमी मनाई जाएगी। रथ सप्तमी के दिन अरुणोदय और अर्घ्यदान पर विशेष ध्यान दिया जाता है। भगवान सूर्य देव की आराधना में यह दोनों चीज बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
यहां जानिए क्या है अरुणोदय और अर्घ्यदान।
अचला सप्तमी पर क्या होता है अरुणोदय?
अरुणोदय का मतलब है सूर्योदय का समय। रथ सप्तमी के दिन भक्तों को गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा या गोमती नदी में सूर्योदय से पहले स्नान कर लेना चाहिए। कई सालों से यह प्रथा चली आ रही है और इसे बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अरुणोदय से पहले सूर्य जयंती के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से आरोग्य जीवन प्राप्त होता है।
अचला सप्तमी पर क्या है अर्घ्यदान?
अरुणोदय से पहले पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद भक्त तांबे के कलश से भगवान सूर्य को जल से अर्घ्य देते हैं इसे हिंदू धर्म शास्त्रों में अर्घ्यदान कहा जाता है। अर्घ्यदान देने के बाद लोग दिया जलाते हैं और लाल रंग के फूल से भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। भगवान सूर्य देव की विधिवत तरीके से पूजा करने के बाद लोग गरीबों और जरूरतमंदों को खाना, कपड़ा, पैसा या अन्य चीजों का दान देते हैं। रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की पूजा करने से दीर्घायु और सफलता का वरदान मिलता है।