- साईं की ये 9 किताबें उनकी जीवन की झलक देती हैं
- ये किताबें उनके समकालीन लोगों द्वारा लिखी गई हैं
- साईं के अनुभव और चमत्कार का भी इन किताबों में जिक्र है
सांईं बाबा पर अनगिनत किताबें लिखी जा चुकी हैं, लेकिन यहां जिन किताबों के बारे में आपको बताने जा रहे उनका अपना एक अलग महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि इनमें से कई किताबें उनके जीवन और दिनचर्या के ज्यादा करीब हैं। ये किताबें इसलिए भी ज्यादा महत्व रखती हैं, क्योंकि इनमें से कई किताबें उनके काल में या उनके समकालीन लोगों द्वारा लिखी गई हैं। इसलिए इन किताबों की पवित्रता और सत्यता बहुत है। खास बात ये है कि इनमें से कई किताबें केवल साईं संस्थान ट्रस्ट के पास ही उपलबध हैं। तो आइए जानें कि ये 9 किताबें कौन सी हैं।
1. 'श्री सांईं सच्चरित्र'
'श्री सांईं सच्चरित्र’ मूल रूप में वैसे तो मराठी में लिखी गई है, लेकिन इसके हिंदी संस्करण भी उपलब्ध हैं। इस किताब श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर ने लिखी है। 1910 से ही साईं बाबा से दाभोलकरजी जुड़े हुए थे और सांईं उन्हें हेमाडपंत के नाम से पुकारते थे। यह किताब उन्होंने साईं के इस दुनिया में रहते हुए ही लिखनी शुरू कर दी थी। 1859 में जन्मे दाभोलकर ने सांईं सच्चरित्र को किताब 1923 से लिखना शुरू किया था और करीब 6 साल में वह इसके 52 अध्यायों की रचना कर दिए थे। 15 जुलाई 1929 को उनके निधन के बाद इस पुस्तक के 53वें अध्याय को बीवी देव ने पूरा किया और 1929 को ही इस किताब को प्रकाशित किया गया था।
2. 'डिवोटीज एक्सपीयरेन्सज ऑफ श्री सांईं बाबा'
1936 में जब श्री बीवी नरसिंहा साईं बाबा की समाधि मंदिर में आए तो यहां आकर वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने साईं पर किताब लिखने की ठान ली। नरसिंहा स्वामीजी सन् 1936 से 1938 तक साईं के उन भक्तों का अनुभव एकत्र किया, जो कि सांईं बाबा के सान्निध्य में रहे थे।
उनके अनुभवों और संस्करण को एकत्र करते रहे और बात में इसे एक किताब में उल्लेखित कर दिया। इस किताब का नाम 'डिवोटीज एक्सपीयरेन्सज ऑफ श्री सांईं बाबा' है और ये किताब 3 खंडों में प्रकाशित की थी। श्री नरसिंह स्वामीजी ने 'सांईं मननंम्' नामक एक और पुस्तक लखे हैं। उनकी पुस्तक के अनुसार, उन्होंने दावा किया है कि साईं ब्राह्मण माता-पिता की संतान थे। 1948-49 में नरसिंहा स्वामी ने बाबा की उदी देकर सांईं भक्त बिन्नी चितलूरी की मां को पूर्णत: स्वस्थ कर दिया था। नरसिंहा स्वामी का जन्म 21 अगस्त 1874 को हुआ और इनकी मृत्यु 19 अक्टूबर 1956 को 82 वर्ष की उम्र में हुई थी।
3. 'ए यूनिक सेंट सांईं बाबा ऑफ शिर्डी'
सांईं बाबा के समकालीन भक्त स्वामी सांईं शरणानंद की प्रेरणा से एक किताब लिखी गई जिसका नाम 'ए यूनिक सेंट सांईं बाबा ऑफ शिर्डी' है। इसे श्री विश्वास बालासाहेब खेर और एम. वीकामथ ने लिखा था। खेर ने ही सांईं की जन्मभूमि पाथरी में बाबा के मकान को सांईं स्मारक ट्रस्ट बनाने के लिए खरीदा था। शरणानंद का जन्म 5 अप्रैल 1889 को मोटा अहमदाबाद में हुआ था और उनकी मृत्यु 26 अगस्त 1982 को हुई।
4. 'श्री सांईं द सुपरमैन'
स्वामी सांईं शरण आनंद साईं बाबा के समकालीन थे और वह भी उनसे बहुत प्रभावित थे। उन्होंने भी एक किताब साईं पर लिखी है। हालांकि ये किताब इंग्लिश में है।
5. 'सद्गुरु सांईं दर्शन' (एक बैरागी की स्मरण गाथा)
बीव्ही सत्यनारायण राव (सत्य विठ्ठला) ने 'सद्गुरु सांईं दर्शन' पुस्तक लिखी है और यह पुस्तक उन्होंने अपने नाना से प्ररित हो कर लिखी है। उनके नाना, सांईं बाबा के पूर्व जन्म और इस जन्म के मित्र माने गए थे। ये किताब कन्नड़ में भी है और इंग्लिश में भी है। हिन्दी किताब का नाम 'सद्गुरु सांईं दर्शन' (एक बैरागी की स्मरण गाथा) है।
6. 'खापर्डे की डायरी'
गणेश कृष्ण खापर्डे 1910 में पहली बार साईं के पास आए और उनसे इतने प्रभावित हुए कि फिर वह 1911 में बाबा के पास आए। 1911 में वे बाबा के साथ 3-4 महीने रहने के दौरान वह रोज एक डायरी लिख करते थे। 141 पृष्ठों की 'खापर्डे की डायरी' में बाबा के संबंध में कई अद्भुत जानकारी है। खापर्डे का जन्म 1854 में हुआ था और मृत्यु 1938 में हुई।
7. 'श्री शिर्डी सांईं बाबा की दिव्य जीवन कहानी'
शिरडी साईं ट्रस्ट की ओर से 1923 में अप्रैल महीने में 'सांईं लीला' नाम से मराठी पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ था। इस पत्रिका के शुरुआत के अंक बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस पत्रिका के कई वर्षों तक संपादक रहे चकोर आजगांवरकर ने भी एक किताब लिखी है और उसका नाम है 'श्री शिर्डी सांईं बाबा की दिव्य जीवन कहानी'।
8. श्री सांईं सगुणोपासना
सांईं बाबा के भक्त थे कृष्णराव जोगेश्वर भीष्म ने रामनवमी उत्सव मनाने का विचार बाबा के समक्ष प्रस्तुत किया था और बाबा ने भी इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था। भीष्म बाबा के समकालीन थे और उन्होंने साईं के जीवन से जुड़ी कई बातें अपनी किताब में लिखी हैं। भीष्म का 28 अगस्त 1929 को देहांत हुआ था।
9. सांईं पत्रिकाएं
शिर्डी सांईं संस्थान 'सांईं प्रभा' (1915-1919) और 'श्री सांईं लीला' (1923 ई. से आज तक प्रकाशित) नाम दो पत्रिका प्रकाशित करता है और इसमें बाबा के जीवन और उनके भक्तों से जुड़ी कहानियां प्रकाशित होती हैं।
तो साईं की पूजा के साथ आपको साईं कि इन पुस्तकों भी आपको अध्ययन करना चाहिए। इससे आप साईं के करीब खुद को और जुड़ा पाएंगे।