- संध्या पूजन में समय और काल का रखें ध्यान
- सुबह की भांति शाम के पूजा का भी होता है खास महत्व
- संध्या पूजा से घर पर होता है सुख-समृद्धि का वास
Sandhya Kaal Pooja Time: पूजा-पाठ करने से हम खुद को भगवान के करीब महसूस करते हैं और इससे मन को शांति मिलती है। लेकिन सभी पूजा पाठ का अपना अलग महत्व होता है। पूजा से भगवान का आशीर्वाद तभी प्राप्त होता है जब इसे विधि और नियम के अनुसार किया जाए। हिंदू धर्म में जितना महत्व प्रात: काल पूजा वंदना का है उतना ही महत्व संध्याकाल के पूजा का भी है। फिलहाल हम बात कर रहे हैं संध्याकाल पूजा की। संध्याकाल पूजा में कई बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है। क्योंकि इससे घर की सुख-समृद्धि जुड़ी होती है। इसलिए यह जानना जरूरी है कि संध्याकाल पूजन का समय और नियम क्या है।
सूर्योदय के समय को भोर कहा जाता है। वहीं दिन का दूसरा पहर जब सूरज सिर पर आ जाता है तो इसे मध्याह्न कहते हैं। दोपहर के बाद का समय, जो लगभग 4 बजे तक रहता है उसे अपराह्न कहते हैं। इसके बाद सूर्य ढलने और दिन के अस्त तक सायंकाल चलता है। हमारे बड़े-बुजुर्ग अक्सर कहते हैं कि गर्मी के समय दिन बड़ा और रात छोटी होती है। दरअसल इसका कारण यह है कि ग्रीष्मकालीन (गर्मी) दिनों में सूर्योदय और सूर्यास्त में देरी होती है। लेकिन आपको संध्या काल की पूजा समय से ही करनी चाहिए। संध्या काल की पूजा रात्रि में नहीं करनी चाहिए।
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क्या होता है संध्याकाल
रात्रि होने से पहले और दिन ढलने के मध्य के समय को संध्याकाल कहते हैं। इसे शाम, सांझ, गोधूलि बेला, संघ जैसे कई नामों से जाना जाता है। दिन के चौथे व अंतिम पहर को संध्याकाल कहा जाता है। शाम 4 बजे से 6 बजे तक का समय संध्याकाल का होता है। लेकिन गर्मी के दिनों में 7 बजे तक भी शाम की बेला होती है।
क्यों जरूरी होती है संध्याकाल की पूजा
हर रोज सुबह उठकर स्नान करने के बाद पूजा-पाठ किया जाता है। लेकिन सुबह की पूजा जितनी जरूरी होती है उतना ही महत्व संध्याकाल या शाम के वक्त की पूजा भी होता है। इसलिए प्रतिदिन सुबह के साथ शाम में भी पूजा करनी चाहिए। शास्त्रों में भी सुबह-शाम की पूजा के महत्व के बारे में बताया गया है। लेकिन सुबह और शाम की पूजा के नियम अलग होते हैं, जिन्हें ध्यान में रखना जरूरी होता है।
संध्या पूजन में इन बातों का रखें विशेष ध्यान
- शाम के पूजा में धूप दीप जरूर जलाएं। साथ ही शंख और घंटी बजाकर आरती जरूर करें।
- शाम की पूजा के लिए तुलसी पत्ता ना तोड़े। अगर आप तुलसी पत्ता पूजा में शामिल करना चाहते हैं तो इसे सुबह ही तोड़ कर रख लें।
- तुलसी पत्ता के साथ ही सूर्यास्त के बाद फूल भी नहीं तोड़ना चाहिए।
- शाम की पूजा के बाद भगवान के मंदिर को पर्दे से ढक दे और फिर इसे सुबह हटा दें।
कब करें संध्याकाल पूजा
दिन ढलने के बाद के समय को संध्याकाल कहा जाता है। इसलिए आप दिन ढलने और रात्रि होने से पहले के बीच के समय में कभी भी संध्या पूजन कर सकते हैं। वैसे तो संध्या पूजन का समय सामान्यत: शाम 4 बजे से 6 बजे तक होता है। लेकिन गर्मी के मौसम में दिन ढलने और शाम होने में देरी होती है इसलिए आप शाम 7 बजे कर भी संध्या पूजा कर सकते हैं। मौसम के अनुसार मंदिरों में भी संध्या पूजन और आरती के समय में बदलाव किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, मंदिरों में सर्दी के मौसम में संध्या आरती शाम 5:30 या 6 बजे के लगभग होती है तो वहीं गर्मी के दिनों में इसका समय 6:30 या 7 बजे के करीब हो जाता है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)