- 5 अक्टूबर को है अधिक मास का संकष्टी चतुर्थी व्रत
- इस दिन भगवान गणेश का पूजन किया जाता है
- साथ ही चांद निकलने के पश्चात शुभ मुहूर्त में अर्घ्य दिया जाता है
Sankashti Chaturthi October 2020 Vrat Katha, Puja Vidhi in Hindi: हिंदू मान्यताओं के अनुसार हर महीने में किसी न किसी देवी देवता का एक खास दिन होता है। उस दिन उन्हें मानने वाले भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति भावना से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। जैसे, भगवान शिव, भगवान विष्णु, देवी दुर्गा और भगवान कार्तिकेय के भक्त त्रयोदशी, एकादशी, अष्टमी और षष्ठी पर व्रत रखते हैं, उसी तरह भगवान गणेश को मानने वाले लोग चतुर्थी को उपवास रखते हैं और उनकी विधिवत तरीके से पूजा-पाठ करते हैं।
Vibhuvana Sankashti ganesh Chaturthi 2020
पुरुषोत्तम मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले इस व्रत को संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत भी कहते है। संकष्टी का अर्थ होता है मुसीबतों को हरने वाला इस दिन भगवान गणेश को अपना आराध्य मानने वाले भक्त सच्ची श्रद्धा से और पूरी शुद्धता से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं उन्हें लड्डू, हलवा-पूरी, मेवा इत्यादि का भोग लगाते हैं। रात में जब चंद्रोदय होता है तब चांद को देखकर जल अर्पण करके ही भक्त अपना व्रत खोलते हैं। जानते हैं इस व्रत की तिथि और उससे जूड़ी पौराणिक कथा।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत पूजन समय (Sankashti ganesh Chaturthi 2020 Puja Muhurat)
5 अक्टूबर 2020 को संकष्टी गणेश चतुर्थी पड़ रही है। पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाले इस व्रत का शुभ समय 5 अक्टूबर को सुबह 10:02 बजे से शुरू हो कर 6 अक्टूबर की दोपहर 12:31 तक रहेगा।
Vibhuvana Sankashti ganesh Chaturthi 2020 Chandra pujan time
चंद्रमा को जल अर्पण करने का समय रात के 8:12 पर शुभ रहेगा।
संकष्टी गणेश चतुर्थी का महत्व (Purushottam Maas Sankashti Chaturthi Significance)
शास्त्रों के अनुसार संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करने से आपके जीवन की हर समस्या दूर हो जाती है पुरुषोत्तम महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पड़ने वाले इस व्रत में चंद्रमा को जल अर्पण करने से आपका भाग्य खुलता है और सभी प्रकार की शारीरिक समस्याएं, बीमारियां दूर होती हैं। किसी भी मनोकामना को पूरी करने के लिए संकष्टी गणेश चतुर्थी का विधिपूर्वक व्रत जरूर करना चाहिए। इस दिन चंद्रमा को जल अर्पण करने से विवाह से जुड़ी सभी समस्याएं भी समाप्त होती हैं।
संकष्टी गणेश चतुर्थी पौराणिक कथा (Vibhuvana Sankashti Chaturthi Katha)
सतयुग में एक बहुत प्रतापी राजा 'पृथु' हुआ करते थे। राजा पृथु को सौ यज्ञ कराने के लिए भी जाना जाता है। उनके राज्य में एक ब्राह्मण हुआ करता था जिसे चारों वेदों का ज्ञान था वह बहुत ही ज्ञानी और प्रसिद्ध विद्वान था। उसके चार पुत्र थे, जब उसके चारों पुत्र बड़े हुए तब उसने उन चारों का विवाह कर दिया। उसमें से सबसे बड़े पुत्र की पत्नी संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करती थी, जब वह विवाह करके अपने ससुराल आई तब उसने अपने सास-ससुर से भी यह व्रत करने देने की इजाजत मांगी। लेकिन उसके ससुर ने कहा, तुम एक अच्छे घर की बड़ी बहू हो तुम्हें किस बात की कमी है जो तुम यह संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत करना चाहती हो। बहू के बार-बार कहने पर भी उसके सास-ससुर ने उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं दी।
कुछ समय बाद उसे एक सुंदर सा लड़का हुआ। जब लड़का बड़ा हुआ तब उसके माता-पिता ने उसका विवाह तय कर दिया। लेकिन विवाह के दिन ही उस लड़के की मति भ्रष्ट हो गई और वह कहीं चला गया। जब यह बात सभी को पता चली तो हर तरफ लड़के की खोज-बीन शुरू हो गई। लेकिन लड़का कहीं नहीं मिला। तब ब्राह्मण की बड़ी बहू ने कहा, ससुर जी मैंने आपसे कहा था कि मुझे संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करने दीजिए उसी की वजह से मेरा बेटा कहीं चला गया है। यह बात सुनकर ब्राह्मण दुखी हो गया और उसने बहू को संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत करने की इजाजत दे दी। बहू ने जैसे ही संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत का संकल्प लिया उसका लड़का वापस चला आया। उसके बाद से बहू और लड़के की पत्नी भी संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी, जिससे उनके जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो गईं।