- शिवजी के शरीर पर धारण हर वस्तु कुछ संकेत देती है
- शिवजी के ये संकेत मनुष्य के जीवन से जुड़े सत्य बताते हैं
- भस्म से लेकर नाग धारण करने तक में छुपा है रहस्य
भगवान शिव की जटाओं से लेकर उनके गले में लिपटे सर्प और मस्तक की तीसरी आंख और त्रिशुल केवल उनका स्वरूप नहीं है बल्कि इस स्वरूप में कई रहस्य छुपे हुए हैं। उनके शरीर पर मौजूद वस्त्र हो या भस्म सब कुछ में कुछ न कुछ बात छुपी हुई है। उनका कैलाश पर रहना और वृषभ की सवारी करना बहुत कुछ बताता है, लेकिन एक आम इंसान इन रहस्यों से वाकिफ नहीं हैं। तो आइए आज भगवान शिव के 15 चीजों के पीछे छुपे रहस्य और संकेत को जानें।
भगवान शिव के वस्त्र और वस्तुओं को धारण करने का जानें मतलब
चन्द्रमा : शिव जी का एक नाम सोम है और सोम चंद्रमा को कहते हैं। यही कारण है कि शिवजी और चंद्रमा का विशेष दिन सोमवार होता है। चन्द्रमा को मन का कारक माना गया है और शिव जी के चन्द्रमा को धारण करने का मतलब है मन पर नियंत्रण।
त्रिशूल : भगवान शिव का त्रिशूल दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक भी है। इसमें 3 तरह की शक्तियां विराजमान होती हैं- सत, रज और तम। त्रिशूल के 3 शूल सृष्टि के उदय, संरक्षण और लयीभूत होने का प्रतिनिधित्व करते हैं।
नाग : भगवान शिव के नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से स्पष्ट है कि नागों के ईश्वर होने के कारण शिव का नाग या सर्प से विशेष लगाव है। भगवान के गले में लिपटा हुआ नाग कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है।
डमरू : भगवान शिव का डमरू नाद का प्रतीक है। नाद अर्थात ऐसी ध्वनि, जो ब्रह्मांड में निरंतर जारी है जिसे 'ॐ' कहा जाता है। भगवान शिव संगीत के जनक माने गए हैं और उन्होंने ही संगीत और नृत्य सर्वप्रथम किया था। उससे पहले कोई भी नाचना, गाना और बजाना नहीं जानता था। संगीत में अन्य स्वर तो आते-जाते रहते हैं, उनके बीच विद्यमान केंद्रीय स्वर नाद है।
वृषभ : वृषभ शिव का वाहन है और ये धर्म का प्रतीक है। मनुस्मृति में धर्म को चार पैरों वाला प्राणी कहा गया है। ये चार पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं।
जटा : शिव जी की जटा वायुमंडल का प्रतीक है। अंतरिक्ष के देवता हैं।
गंगा : शिवजी ने गंगा को जटा में धारण किया है और यही कारण है कि उनका जलाभिषेक किया जाता है।
भभूत या भस्म : शिव के शरीर पर रमा भस्म या भभूत जीवन का सत्य है। यानी सब कुछ खत्म होने के बाद भस्म बनना तय है। भस्म आकर्षण, मोह आदि से मुक्ति का प्रतीक माना गया है। उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिव की भस्म आरती होती है जिसमें श्मशान की भस्म का प्रयोग होता है।
तीसरा नेत्र : शिव जी को त्रिलोचन भी कहा जाता है। तीन आंख होने के कारण उनका ये नाम पड़ा है। तीसरी आंख का मतलब होता है निरंतर सचेत रहना। शिव का तीसरी आंख हमेशा अधखुली होती है इसका मतलब है संसार और संन्यास। यानी व्यक्ति ध्यान-साधना या संन्यास में रहकर भी संसार की जिम्मेदारियों को निभा सकता है।
त्रिपुंड तिलक : शिवजी के माथे पर लगा त्रिपुंड तिलक त्रिलोक्य और त्रिगुण का प्रतीक है। यह सतोगुण, रजोगुण और तपोगुण का भी प्रतीक माना गया है।
रुद्राक्ष : रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई है।