- ब्रम्हा के मानस हैं नारद मुनि, कहे जाते हैं पहले पत्रकार।
- भगवान विष्णु के अनन्य भक्त के रूप में भी है उनकी पहचान।
- नारद जयंती 2021 पर जानिए देवर्षि के जन्म की कथा, समय, पूजा विधि और महत्व।
Narada Jayanti Katha 2021 and Significance: देवर्षि नारद, एक ब्रह्मचारी (तपस्वी) हैं जिन्हें नारद मुनि कहा जाता है, वह भगवान ब्रह्मा (ब्रह्मांड के निर्माता) और ज्ञान की देवी देवी सरस्वती के पुत्र हैं। कहा जाता है कि उनका जन्म ज्येष्ठ, कृष्ण पक्ष (पूर्णिमंत कैलेंडर के अनुसार) के हिंदू महीने में प्रतिपदा तिथि (पहले दिन) में हुआ था। हालांकि, अमावसंत कैलेंडर का पालन करने वाले भक्त उनकी जयंती प्रतिपदा तिथि, कृष्ण पक्ष वैशाख को मनाते हैं।
इस बीच त्योहार का दिन वही रहता है, और केवल महीनों के नाम अलग-अलग होते हैं। ज्येष्ठ माह पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार शुरू होता है, और इसलिए कई भक्त आज नारद जयंती मना रहे हैं। भगवान विष्णु में अपनी अटूट आस्था रखने वाले मुनि नारद से जुड़े इस महत्वपूर्ण के बारे में ज्यादा जानकारी यहां जानिए।।
नारद जयंती प्रतिपदा तिथि का समय (Narada Jayanti Muhurat)
प्रतिपदा तिथि 26 मई को शाम 4:43 बजे शुरू हुई और 27 मई को दोपहर 1:02 बजे समाप्त होगी।
नारद जी के जन्म कथा (Narada Jayanti Katha Birth Story of Narad Muni)
चिरकाल में एक बार गंधर्व और अप्सराएं भगवान ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे। उस समय गंधर्व 'उपबर्हण' (नारद जी जो पूर्व जन्म में गंधर्व थे) अप्सराओं के साथ श्रृंगार भाव में उपस्थित हुए। यह देखकर भगवान ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठे और 'उपबर्हण' को शूद्र योनि में जन्म लेने का शाप दिया। ब्रह्मा जी के शाप फलस्वरूप नारद का जन्म 'शूद्रा दासी' के घर पर हुआ।
इसके बाद उन्होंने प्रभु की भक्ति आराधना की तो उन्हें ईश्वर के एक दिन दर्शन हुए। इससे उनके मन में ईश्वर और सत्य को जानने की लालसा और भी बढ़ गई। इसी समय आकाशवाणी हुई कि- 'हे बालक, इस जन्म में अब तुम मेरे दर्शन नहीं कर पाओगे। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद होंगे।' इसके बाद नारद ने भगवान श्रीहरि विष्णु की कठिन तपस्या की, जिसके फलस्वरूप वह कालांतर में ब्रम्हा जी के मानस पुत्र के रूप में फिर अवतरित हुए।
नारद जयंती पूजा विधि (Narada Jayanti Puja Vidhi)
नारद जयंती के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और फिर वस्त्र धारण करके पूजा घर की भी साफ-सफाई कर लें। साथ ही अपने व्रत का संकल्प लें और इसके बाद ऋषि नारद का ध्यान करते हुए पूजा-अर्चना करें
नारद मुनि को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, पुष्प, धूप आदि समर्पित करें। साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों को दान भी करें।
नारद जयंती का महत्व (Significance of Narada Jayanti)
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ऋषि नारद मुनि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त और ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन नारद जी की पूजा आराधना करने से भक्तों को बल, बुद्धि और सात्विक शक्ति प्राप्ति होती है।
इसके अतिरिक्त पौराणिक मान्यता यह भी है कि नारद मुनि ना केवल देवताओं, बल्कि असुरों के बीच भी आदरणीय माने गए। वह दुनिया के पहले पत्रकार माने गए हैं और सबके बीच सम्मानित हैं। नारद जयंती के व्रत से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।