- जुलाई का प्रदोष व्रत 11 जुलाई सोमवार के दिन रखा जाएगा
- सोमवार के दिन होने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है
- सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव जी को समर्पित होता है
Som Pradosh Vrat 2022 Katha: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। प्रदोष व्रत आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। जुलाई का प्रदोष व्रत व्रत 11 जुलाई सोमवार के दिन रखा जाएगा। सोमवार के दिन होने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत का जाता है। सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव जी को समर्पित होता है। सोम प्रदोष व्रत में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करने पर हर मनोकामना की पूर्ति होती है। प्रदोष व्रत रखने पर हर दोष व संकटों से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लोग शिव चालीसा का पाठ करते हैं। इसके अलावा सोम प्रदोष व्रत की कथा सुनने से भी भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती हैं। आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत में शिव जी की कथा के बारे में..
सोम प्रदोष व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ हर रोज भीख मांगने जाती और शाम के समय तक लौट आती। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ? दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था। उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया। पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया। बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया।
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कई दिन बीत जानें के बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी। ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है।
कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए। कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया।
कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया। राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी। उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया। राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)