- वट सावित्री के दिन सुहागन महिलाएं सोलह सिंगार करके वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं
- इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है
- महिलाएं बरगद के पेड़ की 21 या 108 बार परिक्रमा करती हैं
Vat Savitri Vrat 2022: हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्त्व है। यह व्रत सुहागन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार वट सावित्री का व्रत हर साल जेष्ठ महीने की अमावस्या के दिन रखा जाता है। इस साल वट सावित्री का व्रत 30 मई को पड़ रहा है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि यह व्रत करवा चौथ की तरह ही फलदाई होता है। इस दिन सुहागन महिलाएं सोलह सिंगार करके वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। महिलाएं बरगद के पेड़ की 21 या 108 बार परिक्रमा करती हैं। वह अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। इस दिन बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि मान्यता है कि बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का वास होता है। वट सावित्री की पूजा करते वक्त पूजा सामग्री पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पूजा में लगने वाले कुछ सामग्री का होना पूजा में विशेष महत्त्व रखता है। आइए जानते हैं वट सावित्री की पूजा में लगने वाली सामग्री के बारे में...
यह पूजन सामग्री जरूर करें शामिल
वट सावित्री की पूजा करने वाली महिलाओं को सबसे पहले पूजा सामग्री तैयार कर लेनी चाहिए और इस थाली में कुछ विशेष सामग्री जरूर रखनी चाहिए। वह है- सावित्री और सत्यवान की मूर्ति बांस का पंखा कच्चा सूत लाल रंग का कलावा बरगद का फल धूप मिट्टी का दीपक , फल, फूल, बतासा, रोली, सवा मीटर का कपड़ा, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, घर से बनी पूडिया, भीगा हुआ चना, मिठाई, घर में बना हुआ व्यंजन, जल से भरा हुआ कलश, मूंगफली के दाने, मखाने का लावा यह चीज पूजा सामग्री में विशेष महत्त्व रखती हैं।
शुभ मुहूर्त
वट सावित्री का समय-अमावस्या का प्रारंभ 29 मई दिन रविवार दोपहर 2:54 से हो रहा है। इसका समापन 30 मई दिन सोमवार को सायंकाल 4:59 पर हो रहा है।
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कैसे करें पूजा
सुहागन महिलाएं इस दिन सबसे पहले सुबह उठकर घर की सफाई करें। फिर स्नान करें उसके बाद साफ सुथरे वस्त्र धारण करें। अगर आप सोलह शृंगार करती हैं तो बेहद शुभ होगा। जिसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें। फिर पूजन सामग्री को किसी पीतल के पात्र या बांस से बने टोकरे में रखकर करीब के बरगद के पेड़ के पास जाएं और पूजन करें। जलाभिषेक से पूजा की शुरुआत करें। इसके बाद वस्त्र और सोलह श्रृंगार अर्पित करें। पकवान सहित बरगद को फल चढ़ाएं और पंखा करें। इसके बाद अब रोली से बरगद के पेड़ की 21 व 108 बार परिक्रमा करें। इशके बाद उनकी कथा सुने।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)