- हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
- विनायक चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है तथा उपवास रखा जाता है।
- विनायक चतुर्थी व्रत रखने वाले भक्तों को भगवान श्री गणेश ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
सनातन धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। किसी भी मांगलिक या धार्मिक कार्य प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश की सर्वप्रथम पूजा की जाती है। भगवान श्री गणेश को विनायक, गजानन, गणपति, लंबोदर, विघ्नहर्ता आदि नामों से भी जाना जाता है।भगवान श्री गणेश के नामों का उच्चारण करना लाभदायक होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। यह तिथि अक्सर अमावस्या के बाद पड़ती है। इसके विपरीत पूर्णिमा तिथि के बाद पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश की विधिवत तरीके से पूजा करना बहुत मंगलकारी माना गया है। कहा जाता है कि विनायक चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश की पूजा करने से भक्तों के मनवांछित फल पूर्ण होते हैं तथा उन्हें ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद मिलता है। विनायक चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश की पूजा के साथ कथा सुनना भी अत्यंत लाभकारी माना गया है।
Vinayak Chaturthi 2021 april
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह में विनायक चतुर्थी 16 अप्रैल को मनाई जाएगी। अगर आप भी विनायक चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश की पूजा कर रहे हैं तो यह प्रसिद्ध कथा अवश्य पढ़ें और सुनाएं।
विनायक चतुर्थी व्रत कथा, विनायक चतुर्थी की कथा, विनायक चतुर्थी कथा
बहुत समय पहले, नर्मदा नदी के तट पर माता पार्वती और भगवान शिव चौपड़ खेल रहे थे। विजेता का फैसला करने के लिए भगवान शिव ने एक पुतला बनाया और उसे जीवित कर दिया। भगवान शिव ने उस बालक को यह आदेश दिया कि वह विजेता का फैसला करेगा। इसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव चौपड़ खेलने में व्यस्त हो गए। माता पार्वती और भगवान शिव के बीच तीन बार चौपड़ का खेल हुआ जिसमें माता पार्वती तीनो बार विजयी हुईं। जब उस बालक से विजेता का नाम पूछा गया तब उसने भगवान शिव का नाम लिया। बालक का यह जवाब सुनकर माता पार्वती को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उस बालक को लंगड़ा होने तथा कीचड़ में रहने का श्राप दे दिया।
माता पार्वती से क्षमा मांगते हुए उस बालक ने कहा कि उससे यह भूलवश हो गया था। वह बालक माता पार्वती से क्षमा मांगने लगा। श्राप से मुक्त होने के लिए माता पार्वती ने उसे बताया कि यहां नागकन्याएं भगवान श्री गणेश की पूजा करने के लिए आएंगी तब उनके कहे अनुसार तुम्हें गणेश व्रत करना है। व्रत करने से तुम्हें अपने श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।
ऐसे हुआ उस बालक का श्राप दूर
वह बालक करीब एक साल तक इस श्राप से जूझता रहा। एक साल बाद भगवान गणेश की पूजा करने के लिए नागकन्याएं आईं, उस बालक ने उनसे गणेश व्रत की विधि पूछी और 21 दिन लगातार सच्चे मन से भगवान गणेश का व्रत और पूजा करने लगा। बालक की सच्ची श्रद्धा देखकर भगवान गणपति ने उसे दर्शन दिया और उससे वरदान मांगने को कहा। भगवान गणेश को देखकर वह बालक अत्यंत प्रसन्न हुआ और कहा कि उसके पैर स्वस्थ हो जाएं और वह कैलाश में माता पार्वती और भगवान शिव से मिल सके। भगवान गणेश ने उसकी इच्छाओं को पूरी किया।
विनायक चतुर्थी व्रत की महिमा
वह बालक ठीक होने के बाद कैलाश पहुंचा जहां उसे भगवान शिव मिले। भगवान शिव ने भी 21 दिन तक गणेश व्रत किया जिसके बाद माता पार्वती की नाराजगी दूर हो गई। भगवान शिव ने माता पार्वती को गणेश व्रत की विधि और उसकी महिमा के बारे में बताया। कुछ दिन बाद माता पार्वती का मन कार्तिकेय से मिलने का हुआ। अपनी इच्छा पूरी करने के लिए माता पार्वती ने भी 21 दिन तक गणेश व्रत किया और वह सफल हुईं। तबसे विनायक चतुर्थी का व्रत लोग करने लगे।