- विश्वकर्मा पूजा के दिन ही भगवान विश्वकर्मा का हुआ था जन्म
- भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर कहा जाता है
- जानें भगवान विश्वकर्मा का कैसे हुआ था जन्म
Vishwakarma Puja 2022 Vrat Katha in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा पूजा हर साल कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस बार यह पूजा 17 सितंबर को की जाएगी। इस दिन कल-कारखानों, घर में मौजूद अस्त्र-शस्त्र की विशेष पूजा की जाती हैं। ऐसा कहा जाता है,कि इस दिन इन चीजों की पूजा करने से भगवान विश्वकर्मा बेहद प्रसन्न होते है। बता दें भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर (Vishwakarma Puja vrat 2022) कहा जाता है। हिंदू शास्त्र के अनुसार देवताओं के अनुरोध करने पर ही भगवान विश्वकर्मा ने अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया था। लेकिन क्या आपको पता है भगवान विश्वकर्मा का कैसे जन्म (Vishwakarma Puja vrat vidhi in hindi) हुआ था। अगर नहीं, तो इस आर्टिकल से आज हम आपको यह सारी जानकारियां देंगे। तो चलिए जानते हैं भगवान विश्वकर्मा का कैसे हुआ था जन्म (Vishwakarma Puja vrat katha 2022)।
Vishwakarma Puja Vrat Katha, Kahani in Hindi
विश्वकर्मा पूजा के व्रत की प्रथम कहानी (Vishwakarma Puja vrat kahani)
पौराणिक कथा (Vishwakarma Puja 2022 vrat katha) के अनुसार जब सृष्टि का निर्माण हो रहा था, तो वहां सर्वप्रथम भगवान नारायण यानी साक्षात भगवान विष्णु सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। भगवान विष्णु के प्रकट होने के बाद उनकी नाभि कमल से चतुर्मुख भगवान ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो गए थें। ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' और धर्म के पुत्र 'वासुदेव' थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 'वस्तु' से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे,जो शिल्पशास्त्र में बहुत ही बुद्धिमान थे। वासुदेव की पत्नी अंगिरसी' ने भगवान विश्वकर्मा को जन्म दिया। आगे चलकर अपने पिता के तरह ही भगवान विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बनें।
विश्वकर्मा पूजा के व्रत की दूसरी कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में काशी नगरी में एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण था, लेकिन फिर भी वह भोजन से अधिक धन नही कमा पाता था। इस वजह से उसे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इतना ही नहीं उसकी पत्नी पुत्र ना होने की वजह से बहुत दुखी रहती थी। वह दोनों अक्सर पुत्र की प्राप्ति के लिए साधु के पास जाते थे। लेकिन उनकी इच्छा फिर भी पूरी नहीं हो पाती थी। एक दिन उनका एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार से कहा कि तुम दोनों भगवान विश्वकर्मा की पूजा करों। तुम्हारी हर इच्छा अवश्य पूर्ण होगी।
अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा का महत्व सुनों। अपने पड़ोसी के ऐसा कहने पर अगले अमावस्या को रथकार की पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा पूरी श्रद्धा से की। उसकी भक्ति को देखकर भगवान विश्वकर्मा बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंनें उसे पुत्र होने का वरदान दिया। भगवान विश्वकर्मा के आशीर्वाद से रथकार की पत्नी को एक बेहद खूबसूरत पुत्र हुआ। इसके बाद से दोनों सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)