- जेष्ठ वर-वधू का विवाह जेष्ठ माह में विवाह नहीं करना चाहिए
- एक गोत्र में में वर-वधू के होने पर विवाह वर्जित होता है
- जब वर-वधू के ग्रहों में वैर-योनि दोष हो तो ऐसे योग में विवाह वर्जित है
ये बात बिलकुल सही है कि जोड़ियां ऊपर वाला ही तय कर भेजता है, लेकिन कई बार जोड़ियां बनते-बनते रह जाती हैं, क्योंकि विवाह योग सही नहीं होते हैं। ज्योतिष में विवाह योग का बहुत महत्व माना गया है। ज्योतिष कहता है कि यदि वर-वधू की कुंडली का मिलान का अंक उत्तम हो, लेकिन योग सही न हो तो ऐसे विवाह नहीं करने चाहिए। विवाह का योग और कुंडली का मिलान अंक दोनों ही अच्छा होने पर विवाह करना चाहिए। ऐसी स्थिति में सामान्यत: यह सभी को जानना चाहिए कि विवाह योग कब वर-वधू के लिए बेहतर नहीं होता है।
इन योग में विवाह करना अच्छा नहीं माना गया है
- यदि सबसे बड़े पुत्र या पुत्री दोनों का ही जन्म नक्षत्र, जन्म चंद्र मास और जन्म तिथि एक हो तो विवाह नहीं करना चाहिए। साथ ही यदि लड़का और लड़की अपने घर में जेष्ठ हो तो उनका विवाह जेष्ठ मास नहीं करना चाहिए। तीन जेष्ठ का योग सही नहीं होता है।
- दो सगे भाइयों के विवाह छह सौर मास के बाद ही करना चाहिए। साथ ही यदि घर में बहू आए तो 6 मास तक कन्या की विदाई नहीं करनी चाहिए।
- जब आकाश में बृहस्पति और शुक्र अस्त हो या इनका बालत्य या वृद्धत्व दोष चल रहा हो उस योग में विवाह नहीं करना चाहिए।
- वर और कन्या का जब गोत्र एक हो तो विवाह वर्जित होता है।
- यदि कन्या या वर कोई एक मंगला या मंगली हो ता विवाह योग बहुत अनिष्टकारी माना जाता है।
- मलमास या खरवास के समय विवाह नहीं करना चाहिए। देव शयन के समय विवाह को देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिलता।
- जब सूर्य अपनी नीच राशि तुला में विचरण कर रहे हों या होलाष्टक हो तो विवाह वर्जित होता है।
- जन्मपत्री मिलान में गण दोष, भ्रकूट (षडाष्टक) यानी वर वधु की राशियां आपस में छठी-आठवीं पड़ती हो या नवम-पंचम दोष हो, जिसमें वर-वधु की राशि आपस में नवीं और पांचवी पड़ रही हो तो ये योग अच्छा नहीं माना जाता है।
- द्विदादर्श दोष हो यानी वर-वधु की राशियां आपस में दूसरी और बारहवीं पड़ती हो। वैर-योनि दोष हो। नाड़ी दोष हो यानी वर-वधु की राशि नक्षत्र और चरण एक ही हो।
- जन्मपत्री मिलान में मनुष्य-राक्षस दोष, भ्रकुट दोष, नवम पंचम दोष हो, द्विदादर्श, वैर योनि और नाड़ी दोष हो लेकिन राशियों में आपस में मित्रता हो तो दोष स्वत: ही समाप्त हो जाते है ऐसी में विवाह शास्त्र सम्मत है।
- पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में सीताजी का विवाह हुआ था। वैवाहिक जीवन में उन्हें अनेक कष्ट झेलने पडे अत: वाल्मिकी ऋ षि ने इस नक्षत्र को विवाह के लिए शुभ नहीं माना। अत: विवाह में इस नक्षत्र को टाल देना चाहिए।
- यदि बृहस्पति सिंह राशि में विचरण कर रहे हो तो गोदावरी नदी के उत्तरी तट से भागीरथी के दक्षिणी तट तक तथा सिंधु नदी तक के क्षेत्र में विवाह कार्य वर्जित बताए गए है।
- दो सगी बहन, दो सगे भाई या भाई-बहनों के विवाह में छह मास से ज्यादा का अंतर होना चाहिए। कभी इनका विवाह एक साथ न करें।
नोट: विवाह के योग सामान्य ज्योतिष ज्ञान के आधार पर बताए गए हैं। विवाह के लिए सही मिलान ज्योतिषाचार्य ही कर सकते हैं।