- कौरवों और पांडवों के बीच हुआ महाभारत युद्ध सदियों से चर्चा में रहा है
- इस पूरे महायुद्ध में एक बड़ी भूमिका कौरवों के पिता धृतराष्ट्र की भी थी
- जब महाभारत के युद्ध की नींव रखी जा रह थी तब हस्तिनापुर के राजा थे धृतराष्ट्र
कौरवों और पांडवों के बीच हुआ महाभारत (Mahabharata) युद्ध सदियों से चर्चा में रहा है। जमीन और राज्य को लेकर हुई इस आर-पार की लड़ाई में कई खून के रिश्ते ताक पर रख दिए गए, युद्धभूमि में किसी ने अपने भाईयों का वध किया तो किसी ने अपने गुरुओं का। धर्मयुद्ध की इस लड़ाई में स्वयं स्वामीनारायण कृष्ण भगवान भी अहम भूमिका निभा रहे थे। इस पूरे महायुद्ध में एक बड़ी भूमिका कौरवों के पिता धृतराष्ट्र की भी थी। कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध उनके ही पुत्रमोह के कारण और उनके गलत फैसलों के कारण हुआ था।
उनके ही छोटे बाई विदुर ने राजदरबार में एक बार कहा भी था कि इतिहास उन्हें इस घोर विपदा का हमेशा उत्तरदायी ठहराता रहेगा। 18 दिनों तक चले कुरुक्षेत्र में इस महाभारत के युद्ध में सैकड़ों जानें गई, अहंकार में चूर सभी कौरव भाई मारे गए और धर्म के साथ चल रहे पांडवों की जीत हुई। इस महाभारत युद्ध के बाद आखिर धृतराष्ट्र का क्या हुआ ये हर कोई जानना चाहता है। जानते हैं उनके बारे में-
जब महाभारत के युद्ध की नींव रखी जा रह थी तब हस्तिनापुर के राजा थे धृतराष्ट्र। वह नेत्रहीन थे। आंखों से तो वह नेत्रहीन थे ही, लेकिन उनके कार्य भी ऐसे ही थे। अपने बेटों के गलत कामों को भी हमेशा नजरअंदाज करते गए और कभी भी धर्म व अधर्म में भेद नहं किया। उनके पास कोई दृरदृष्टि भी नहीं थी वे केवल पुत्रमोह में बंधे थे।
एक तो वे नेत्रहीन और ऊपर वे दिशाहीन थे दूसरी तरफ उनके बड़े बेटे दुर्योधन ने हमेशा उन्हें भ्रमित किया और उनका फायदा उठाते हुए अपना उल्लू सीधा करता रहा।
महाभारत (Mahabharata) के युद्ध में कौरव के 100 भाइयों की मौत हो गई। पांच भाईयों वाले पांडवों की जीत हुई। इसके बाद धृतराष्ट्र को गद्दी से उतार पर युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। लेकिन इसके बाद धृतराष्ट्र का क्या हुआ, क्या उनकी मौत हो गई? हर कोई ये जानने को उत्सुक होता है। आपको बता दें कि राजा बनने के बाद युधिष्ठिर ने अपने महल में धृतराष्ट्र और उनकी पत्नी गांधारी को बुलाया। भीम को छोड़कर सभी पांडव भाईयों ने धृतराष्ट्र की खूब आवभगत की लेकिन भीम उन्हें याद दिलाता रहा कि उन्होंन किस तरह युद्धभूमि में उनके बेटों का वध किया था।
जब भोजन के दौरान धृतराष्ट्र मीट खा रहे थे तब हड्डियों के क्रैक होने की आवाज आने पर भीम ने कहा कि दुर्योधन का जब उन्होंने वध किया था तब उसकी जांघों को तोड़ने पर ऐसी ही आवाजें आई थी। ये सुन कर धृतराष्ट्र का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। इस अपमान को ना सहन कर पाने की स्थिति में उन्होंने युधिष्ठिर का महल छोड़ कर जंगल जाने का निश्चय किया ताकि वहां शांति से मौत को गले लगा सकें।
इसके बाद वे पत्नी गांधारी, पांडवों की मां कुंती और संजय के साथ जंगल को ओर निकल पड़े। एक दिन उसी जंगल में कहीं से आग लग गई। संजय ने उन्हें उस आग से बचाने का रास्ता सुझाया, लेकिन धृतराष्ट्र ने जंगल से निकलने का मन त्याग दिया और जंगल की आग में ही मरना उचित समझा। वे सभी चारों ध्यान की मुद्रा में जंगल के बीचोंबीच बैठ गए और फिर आग की लपटों ने उन्हें अपनी आगोश में ले लिया।