- भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है केदारनाथ
- बैल की पीठ के रूप में होती है यहां शिव जी का उपासना
- पांडवों और महाभारत काल से जुड़ी है स्थापना की कहानी
नई दिल्ली: 29 अप्रैल को उत्तराखंड के केदारनाथ धाम के पट खुल गए। अक्षय तृतीया के बाद आम तौर पर मंदिर के पट खोलने की परंपरा है। इसके बाद हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। लेकिन इस साल कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण मंदिर के लोगों के अलावा अन्य किसी को यहां आने और दर्शन करने की अनुमति फिलहाल नहीं है। यह पाबंदी सरकार के आदेश तक जारी रहेगी। ऐसे में दूर से ही भगवान का ध्यान करने के अलावा और कोई विकल्प भगवान शिव के भक्तों के पास नहीं है। ऐसे में आईए जानते हैं केदारनाथ धाम की स्थापना से जुड़ी महाभारत कालीन कहानी और इससे जुड़े रोचक तथ्य।
एक हजार साल पहले हुआ था मंदिर का निर्माण
केदारनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भगवान शिव के इस मंदिर की स्थापना के कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है लेकिन जिस हिमालय पर्वत पर जिस दुर्गम स्थल पर इसका निर्माण हुआ है उसे अपने आपमें आश्चर्य ही माना जाता है। जो प्रमाण उपलब्ध हैं उसके अनुसार एक हजार साल पहले इस मंदिर का निर्माण हुआ था। यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार 8वीं शताब्दी में करवाया था।
पांडवों से है शिवलिंग की स्थापना का संबंध
हालांकि यहां जिस शिवलिंग की पूजा की जाती है उसकी कथा पौराणिक है। इसका संबंध महाभारत काल और पांडवों से है। कथाओं के अनुसार महाभारत के भीषण युद्ध के में विजय प्राप्त करने के बाद पांडव भातृहत्या का प्रायश्चित्त करना चाहते थे। ऐसे में पांचों भाइयों ने अपने पुत्रों को राजपाट सौंपने दिया और भगवान शिव के दर्शन करने काशी पहुंचे। लेकिन भगवान शिव उनसे नाराज थे और उन्होंने पांडवों को दर्शन नहीं दिए और वो हिमालय चले गए।
पांडव भी अपने निश्चय में दृढ़ थे और वो भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे तो उन्हें ढूंढते हुए हिमालय तक पहुंच गए। लेकिन भगवान शिव ने उन्हें देखकर बैल का रूप धारण कर लिया और वहां विचरण कर रहे गाय बैलों के साथ मिल गए। ऐसे में पांडवों ने उन्हें पहचान लिया लेकिन उन्हें पकड़ नहीं पा रहे थे। ऐसे में जब जानवर दो पहाड़ों के बीच से निकलने लगे तो भीम ने दो पहाड़ों को बीच अपने पैर रख लिए। सभी गाय और बैल उनके पैर के नीचे से निकल गए लेकिन बैल रूपी भगवान शिव ने ऐसा नहीं किया।
कूबड़रूपी पिंडी के रूप में होती है पूजा
ऐसे में भीम ने उन्हें अकेला देखकर पहचाना और उन्हें पकड़ने के लिए झपटे लेकिन भगवान जमीन के अंतर अंतरध्यान होने लगे और उनके हाथ भगवान शिव की बैल रूप की पीठ लगी। पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और पांचों भाईयों को दर्शन देकर उन्हें पाप मुक्त कर दिया। इसके बाद से केदारनाथ में भगवान शिव कूबड़नुमा पिंडी के रूप में पूजे जाते हैं।
ये भी माना जाता है कि भगवान शिव जब बैल रूप में अंतरध्यान हुए तो उनके धड़ का ऊपरी भाग नेपाल के काठमांडू में प्रकट हुआ। उन्हें वहां पशुपतिनाथ के रूप में पूजा जाने लगा। भगवान शिव का मुख रुद्रनाथ में, भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि पद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। इन पांच स्थानों सहित केदारनाथ को पंच केदार कहा जाता है। इन सभी स्थानों पर भी भगवान शिव के भव्यमंदिर हैं।
केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं। परंपरागत रूप से वही यहां पूजा करते हैं। कहा जाता है कि केदारनाथ मे शिवलिंग की स्थापना होने के बाद पांडवों के वंशज जन्मेजय ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया था।