- हनुमान जी ने पहली बार सीता माता को यहीं देखा था
- माता सीता की अशोक वाटिका यहीं मौजूद थी
- मंदिर में बजरंगबली के पैर के निशान मौजूद हैं
नुवारा एलिया की पहाड़ियों में हनुमान चालीसा जब गूंजती हैं तो यहां एक अलग सी अनुभूति होती है। यहां आने वाले भक्तों को यहां ईश्वरीय शक्तियों का अहसास होता है। जंगलों और ऊंची पहाड़ियों के बीच बसे भक्त हनुमान मंदिर में दर्शन करना बहुत खास माना गया है। इन पहाड़ियों पर हनुमान मंदिर के साथ ही माता सीता का अग्नि परीक्षा मंदिर और सीता अम्मन मंदिर भी है, जहां सीता जी की अशोक वाटिका थी। कहा जाता है कि ये अशोक वाटिका आज भी है और भक्त हनुमान के पैरों के निशान भी यहां मौजूद हैं। अशोक वाटिका में पानी की धारा बहती है, जहां सीता मां स्नान किया करती थीं। साथ ही कहा जाता है कि श्रीलंका के कोर्ट में सीता अग्निपरीक्षा मंदिर की कसम खाई जाती है ताकि व्यक्ति झूठ न बोले।
मनोरम पहाड़ियों में बसे हैं भक्त हनुमान मंदिर के ये मंदिर:-
श्री भक्त हनुमान मंदिर
नुवारा एलिया से करीब 45 मिनट की दूरी पर यह मंदिर स्थित है। प्रकृति के मनोरम नजारों के बीच बसा ये मंदिर ईश्वरीय साक्ष्य का सबूत है। माना जाता है कि श्रीलंका में यही वह जगह है जहां हनुमान जी ने पहली बार माता सीता को खोजा था और उन्हें अपने श्रीराम भक्त होने का सबूत दिया था। इसी जगह पर हनुमान जी ने माता सीता को श्रीराम जी की अंगूठी दी थी। मंदिर परिसर के बीच में भगवान हनुमान जी की विशाल प्रतिमा मौजूद है। लोगों का मानना है कि हनुमान जी आज भी यहां आते हैं। इस मंदिर में बहुत सी सीढ़ियां चढ़कर भक्तों को आना पड़ता है क्योंकि ये मंदिर काफी ऊंचाई पर बना हुआ है।
दिवूरमपोला मंदिर
नुवारा एलिया से 15 किमी की दूरी पर दिवूरमपोला मंदिर है। यहां सीता जी ने अग्नि परिक्रमा की थी। मान्यता है कि श्रीलंका के इस राज्य में कानूनी विवादों को सुलझाने से पहले इस मंदिर की शपथ दिलाई जाती है। ये मंदिर अपनी भव्य सफेद वास्तुकला के लिए भी बहुत जाता है। यहां आने के बाद भक्ता को ईश्वरीय शक्तियों का अहसास होता है।
सीता अम्मन मंदिर
श्रीलंका में प्रसिद्ध सीता अमान मंदिर समुद्रतट के पास ही है। ऐसा माना जाता है कि सीता अम्मन मंदिर ठीक उसी जगह पर बनाया गया है जहाँ पर पूर्व में अशोक वाटिका थी। इसी स्थान पर रावण ने माता सीता को रखा था। मंदिर के नीचे एक जल धारा नदी है, जिसके किनारों पर भगवान हनुमान के बड़े-बड़े पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। यही पर भगवान हनुमान ने श्रीरामजी की अंगूठी सौंपने के लिए देवी सीता को सौंपने के लिए खड़े हुए थे।