हिंदू धर्म में मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने का बहुत महत्व है। यह घाट काशी का सबसे प्राचीन श्मशान घाट है। माना जाता है कि इस घाट पर स्नान करने से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। शिव की नगरी काशी में स्थित मणिकर्णिका घाट पर स्नान के लिए देश के कोने कोने से लोगों की भीड़ जमा होती है। इस घाट पर स्नान करने से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चौदस तिथि को मणिकर्णिका स्नान किया जाता है। इस वर्ष मणिकर्णिका स्नान 11 नवंबर दिन सोमवार को है। मान्यताओं के अनुसार चौदस तिथि को मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने से मृत्यु के बाद व्यक्ति को वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है और सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।
औघड़ स्वरूप में भगवान शंकर करते हैं वास
पुराणों के अनुसार मणिकर्णिका घाट पर भगवान शंकर अपने औघड़ स्वरूप में हमेशा निवास करते हैं। मृत्यु के बाद मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।
इसी घाट पर गिरा था देवी सती का कुंडल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा दक्ष द्वारा कराए गए यज्ञ में देवी सती ने अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। उनकी मृत्यु से आहत होकर भगवान शंकर सती के मृत शरीर को अपने कंधों पर रखकर ब्रह्माण्ड में घूमने लगे। तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से खंड खंड कर दिया था। इससे 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। पुराणों के अनुसार वाराणसी स्थित इस घाट पर देवी सती का कुंडल गिरा था। इसलिए इस स्थान को मणिकर्णिका घाट के नाम से जाना जाता है।
कब करना चाहिए मणिकर्णिका स्नान
हिंदू पुराणों के अनुसार वाराणसी स्थित मणिकर्णिका घाट पर सबसे पहले भगवान विष्णु ने स्नान किया था। कहा जाता है कि वैकुण्ठ चौदस की रात्रि में तीसरे पहर में स्नान करने से व्यक्ति को जन्म के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है और आत्मा इधर उधर नहीं भटकती है। सभी पापों से मुक्ति पाने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए देश के लाखों श्रद्धालु कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके भगवान शिव की आराधना करते हैं।
ऐसी मान्यताओं के कारण ही लोग पूरी श्रद्धा से मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के लिए आते हैं और गंगा में अपने पापों को धोकर मृत्यु के बाद जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त होने के लिए प्रार्थना करते हैं।