- स्वास्तिक का प्रयोग हर मंगल कार्य में जरूर होता है।
- स्वास्तिक को गणपति का भी प्रतीक माना जाता है।
- घर के कुछ अलग-अलग हिस्सों में स्वास्तिक बनाया जाए तो इसके चमत्कारिक फायदे होते हैं।
नई दिल्ली. हिंदू धर्म की मान्यताओं में स्वास्तिक के चिन्ह का विशेष महत्व है। स्वास्तिक का प्रयोग हर मंगल कार्य में जरूर होता है। इसे गणपति का भी प्रतीक माना जाता है। यही नहीं, वास्तु शास्त्र में भी इसका विशेष महत्व है।
वास्तु के मुताबिक घर के कुछ अलग-अलग हिस्सों में स्वास्तिक बनाया जाए तो इसके चमत्कारिक फायदे होते हैं। घर की शुरुआत मुख्य दरवाजे से होती है। वास्तु दोष दूर करने के लिए नौ उंगली लंबा और चौड़ा स्वास्तिक चिन्ह मुख्य दरवाजे पर लगाएं।
मुख्य दरवाजे में चिन्ह को लगाने से वास्तुदोष से मुक्ति मिलती है। हालांकि, इस बात का खास ध्यान दें कि इस स्वास्तिक को केवल सिंदूर से बनाना चाहिए। इससे घर में सुख और समृद्धि का वास होता है।
तिजोरी और आंगन में स्वास्तिक
घर की तिजोरी में माता लक्ष्मी का वास होता है। तिजौरी में स्वास्तिक के चिन्ह से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इससे घर में धनी की कमी नहीं रहती है। खासकर दिवाली में तिजोरी में स्वास्तिक चिन्ह जरूर बनाना चाहिए।
वास्तु के अनुसार घर के आंगन में पितृों का निवास होता है। आंगन के बीचो-बीच स्वास्तिक चिन्ह बनाना काफी शुभ माना जाता है। पितृपक्ष में घर के आंगन में गोबर से स्वास्तिक चिन्ह बनाने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
पूजा स्थल में स्वास्तिक
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के मंदिर में देवताओं का वास होता है। ऐसे में यहां पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाना बेहद शुभ माना गया है। स्वास्तिक का चिन्ह बनाने के बाद ही उस पर भगवान की मूर्ति स्थापित होनी चाहिए।
घर की दलहीज की रोजाना सुबह साफ-सफाई करें। इसके बाद स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और फिर धूप दिखाकर भगवान की पूजा-अर्चना करें। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।