- फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाई जाती है आमलकी एकादशी
- आमलकी एकादशी है भगवान विष्णु को समर्पित, इस दिन भगवान विष्णु की होती है पूजा
- आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ की जाती है आंवले के पेड़ की पूजा
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने में दो एकादशी तिथि पड़ती हैं। पहली एकादशी महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ती है वहीं दूसरी एकादशी कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि बेहद फलदाई मानी जाती है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु को आंवला अत्यंत प्रिय है और इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है इसीलिए इस तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार, आंवले के पेड़ के हर एक अंग में भगवान का वास होता है। इस वर्ष आमलकी एकादशी 24 मार्च को मनाई जा रही है। एकादशी तिथि 24 मार्च को सुबह 10:24 पर प्रारंभ होगी और 25 मार्च को सुबह 09:48 पर समाप्त हो जाएगी।
आमलकी एकादशी की पौराणिक व्रत कथा और व्रत का महत्व
आमलकी एकादशी की पहली पौराणिक व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे। एक दिन ब्रह्मा जी ने खुद को जानने की कोशिश की, जिसके लिए उन्होंने परब्रह्म की तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी भक्तिमय तपस्या से प्रसन्न होकर परब्रह्म भगवान विष्णु उनके सामने प्रकट हो गए। जैसे ही ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को अपने समीप देखा वैसे ही वह रोने लगे। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिर रहे थे। यह आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिरकर आंवले के पेड़ में तब्दील हो गए थे। यह देख कर भगवान विष्णु ने कहा कि यह वृक्ष और इस वृक्ष का फल मुझे अत्यंत प्रिय रहेगा और जो भक्त आमलकी एकादशी पर इस वृक्ष की पूजा विधिवत तरीके से करेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी तथा उसके सारे पाप मिट जाएंगे।
आमलकी एकादशी की दूसरी पौराणिक कथा
बहुत समय पहले एक राजा रहता था जो अपने पिछले जन्म में एक शिकारी हुआ करता था। एक दिन आमलकी एकादशी तिथि पर मंदिर में पूजा की जा रही थी और वह शिकारी चोरी करने के लिए मंदिर में छुप गया था। वह इंतजार कर रहा था कि कब सारे लोग जाएं और उसे चोरी करने का मौका मिले। ऐसा करते-करते सुबह हो गई और इस चक्कर में शिकारी ने अनजाने में ही आमलकी एकादशी का व्रत संपूर्ण कर लिया था। जब शिकारी की मृत्यु हो गई थी तब उसने राज परिवार में जन्म लिया था।