- हिंदू धर्म में छठ पूजा का बहुत महत्व है
- छठ पूजा बिहार और उत्तर प्रदेश सहित देश के कई स्थानों पर होती है
- छठ पूजा दीपावली के छठें दिन से शुरू होती है
हिंदू धर्म में छठ पूजा का बहुत महत्व है। यह मुख्य रुप से बिहार में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर संतान प्राप्ति, उसकी लंबी उम्र और सुख समृद्धि की कामना करती हैं। छठ पूजा बिहार और उत्तर प्रदेश सहित देश के कई स्थानों पर होती है।
आमतौर पर सभी व्रतों में छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन माना जाता है। छठ माता की पूजा करने के लिए कई तरह के विशेष प्रसाद बनाए जाते हैं। छठ पूजा दीपावली के छठें दिन से शुरू होती है। इस सूर्य उपासना का पर्व भी कहते हैं। सूर्य को अर्घ्य देकर महिलाएं छठ माता से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं और व्रत के फलदायी होने की कामना करती हैं।
नहाय-खाय से शुरू होती है छठ पूजा
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी से शुरू होती है और चार दिनों तक चलती है। इसे डाला छठ और सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है। इस वर्ष छठ पूजा 31 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू होगी। छठ पूजा का व्रत रखने वाली महिलाएं स्नान करके नए वस्त्र धारण करती हैं और साधारण भोजन ग्रहण करती हैं। व्रती महिलाओं के भोजन करने के बाद ही घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।
दूसरे दिन होता है खरना
छठ पूजा व्रत के दूसरा दिन को खरना कहा जाता है। खरना के दिन महिलाएं और पुरुष दोनों छठ का व्रत शुरू करते हैं। खरना 1 नवंबर को है। खरना की शाम छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इस दौरान चावल, ठेकुआ और दूध के पकवान बनाए जाते हैं। इसके अलावा फल, सब्जियों और गन्ने की भी पूजा होती है। खरना के दिन गुड़ की खीर भी बनायी जाती है।
तीसरे दिन डूबते सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य
छठ के तीसरे दिन सायंकाल पारंपरिक गीतों के साथ काफी धूमधाम से छठ माता की पूजा की जाती है और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस वर्ष 2 नवंबर को व्रती महिलाएं अर्घ्य देंगी। सूर्य को अर्घ्य देने से पहले महिलाएं निर्जला व्रत रखकर कई घंटे तक पानी में खड़ी रहती हैं और फिर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारियां शुरू की जाती हैं।
छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन
छठ पूजा का चौथा दिन सप्तमी के दिन होता है। चौथे दिन व्रती महिलाएं भोर में ही तालाब या नदी में खड़ी हो जाती हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा के व्रत को समाप्त करती हैं। पूजा संपन्न होने के बाद सभी को प्रसाद बांटा जाता है। इस बार सप्तमी 3 नवंबर को है।
इस प्रकार निर्जला व्रत रखकर पूरे विधि विधान के साथ छठ माता की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होने के साथ ही संतान की उम्र लंबी होती है और घर में सुख समृद्धि आती है।