- देव शयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी के बीच होता है चतुर्मास का समय
- देव प्रबोधिनी या देव उठनी एकादशी पर होता है चतुर्मास का समापन, शुरू होते हैं मांगलिक कार्य
- यहां जानिए देव उठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी के व्रत की कथा
Dev Uthani Ekadashi / Dev Prabodhini Ekadashi Vrat Katha: देव उठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी या देव उत्थानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इन सभी शब्दों का अर्थ होता है-भगवान का जागरण। यह एकादशी तिथि चतुर्मास अवधि के समापन का प्रतीक है, जिसमें श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं। इस अवधि के दौरान, भगवान विष्णु समुद्र तल पर आदिशेष नाग पर शयन करते हुए योग निद्रा की स्थिति में रहते हैं और देव उठनी एकादशी पर उनका जागरण होता है।
देव उठनी एकादशी पर व्रत रखना बहुत फलदायी माना गया है। एकादशी के व्रत के दौरान पूजा के समय इसकी कथा का भी पाठ किया जाता है। यहां देखिए देव उठनी एकादशी की व्रत कथा।
देव उठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी की व्रत कथा (Dev Uthani Ekadashi or Pabodhini Ekadashi Vrat Katha)
एक समय की बात है कि एक राजा था जिसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। उसके राज्य में एकादशी के दिन कोई भी अन्न नहीं बेचता था और न ही कोई अन्न खाता था। केवल सभी लोग केवल फलाहार किया करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाहिए और सुंदरी का रूप धारण किया और सड़क किनारे पर बैठ गए। तभी राजा उधर से गुजरे और सुंदरी को देख चकित रह गए। उन्होंने सुंदरी से पूछा कि तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?
तब सुंदरी के रूप में मौजूद भगवान ने कहा कि मैं निराश्रिता हूं। इस नगर में मेरा कोई जानने-पहचानने वाला नहीं है, मैं किससे सहायता मांगू? राजा उसके रूप पर मोहित हुआ और बोला कि तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रह सकती हो। इस पर सुंदरी ने कहा कि मैं तुम्हारी बात मानूंगी लेकिन तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंप देना होगा। इस राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा और मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें वो खाना ही होगा। सुंदरी के रूप पर मोहित राजा ने कहा कि मुझे सारी शर्तें मंजूर हैं।
अगले दिन एकादशी का व्रत था लेकिन रानी ने आदेश दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। इतना ही नहीं घर में उसने मांस-मछली आदि भी पकवाए और परोस कर राजा से खाने को कहा। यह देख राजा बोला, रानी आज एकादशी है इसलिए मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा। तब रानी ने राजा को उनकी शर्त की याद दिलाई और बोली या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी।
राजा ने अपनी स्थिति राजकुमार की मां और बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली, महाराज आप धर्म ना छोड़िए और बड़े राजकुमार का सिर दे दीजिए। पुत्र तो फिर मिल जाएगा लेकिन धर्म की हानि ठीक नहीं। इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आया और अपनी मां की आंखों में आंसू देख उनसे रोने का कारण पूछा। मां ने उसे सारी बात बता दी तो इस राजकुमार ने कहा कि मैं सिर देने के लिए तैयार हूं। मेरे पिताजी के धर्म की रक्षा जरूर होनी चाहिए।
राजा दुखी मन से सुंदरी के पास गए और राजकुमार का सिर देने को तैयार हुए। तभी सुंदरी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उनसे कहा, राजन ये तुम्हारी परीक्षा थी और तुम इस कठिन परीक्षा में सफल रहे हो। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वरदान मांगने को कहा तो राजा ने कहा, आपका दिया सब कुछ है, बस हमारा उद्धार कीजिए। उसी समय वहां एक विमान उतरा और राजा अपना राज्य अपने राजकुमार पुत्र को सौंप कर विमान पर बैठ परम धाम को चले गए।