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Jaya Ekadashi vrat Katha: जया एकादशी का पूरा पुण्‍य देती है यह कथा, व्रत पूर्ण करने के ल‍िए जरूर पढ़ें

Updated Feb 23, 2021 | 08:21 IST

माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी व्रत किया जाता है। इस पूजा की ऐसी मान्यता है, कि इस पूजा को विधिवत इस पूजा को तरीके से पूर्ण करने पर भगवान श्रीहरि बहुत प्रसन्न होते है।

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जया एकादशी पूजा कथा
मुख्य बातें
  • जया एकादशी माघ मास के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है
  • इस दिन भगवान श्री हरि और माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है
  • जया एकादशी का व्रत करने से सभी विघ्न बाधाएं दूर होने के साथ घर में धन की वर्षा होती है

जया एकादशी व्रत बहुत ही बड़ा व्रत होता है। यह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह 23 फरवरी 2021 मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। इस पूजा की ऐसी मान्यता है, कि यदि कोई व्यक्ति इस पूजा को विधि विधिवत तरीके से पूरा करता है, तो भगवान श्रीहरि का आशीर्वाद उस व्यक्ति को जरूर प्राप्त होता है। भगवान श्री हरि की प्रसन्नता जिस घर के ऊपर बनी रहती है, उस घर में माता लक्ष्मी का हमेशा पास रहता है। उस घर में दुख दरिद्रता कभी नहीं आती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री विष्णु के नाम का जाप करने से पिचाश  योनि का भय दूर हो जाता है। तो आइए जाने जया एकादशी की कथा।

जया एकादशी व्रत की कथा

एक समय जब देवराज इंद्र नंदनवन में अप्सराओं के साथ गंधर्व का गा रहे थे। उस समय वहां उनकी पत्नी मालिनी, पुत्री पुष्पवती और चित्रसेन, और गंधर्व पुष्पदंत भी थे। विहार में मैं इंद्र के पुत्र, पुष्पवान और उसका पुत्र मूल्यवान भी गंधर्व के साथ गा रहे थे। उसी समय में गंधर्व कन्या पुष्पवती माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और उसे अपने रूप की शक्ति से अपने वश में कर लिया। जिस कारण से दोनों का मन चंचल हो गया।

मन चंचल होने के कारण वह सुर और ताल के विपरीत गान करने लगे। जिसे देखकर इंद्र को गुस्सा आ गया और उन्होंने उनदोनों को श्राप देते हुए कहा कि तुम दोनों ने न सिर्फ यहां की मर्यादा को भंग कि है, बल्कि मेरी आज्ञा का भी उल्लंघन किया है। इसलिए तुम दोनों को स्त्री-पुरुष के रूप में मृतलोक पर जाकर वहां अपने कर्म का फल भोगना पड़ेगा। इस प्रकार इंद्र के द‍िए गए श्राप से दोनों पृथ्वी पर हिमालय के क्षेत्र में अपना जीवन दुखपूर्वक बिताने लगे। दुख के कारण दोनों की नींद भी खत्म हो चुकी थी। दिन गुजरने के साथ समस्याएं भी बढ़ती जा रही थी। तब दोनों ने निर्णय लिया कि देव अपराध करें और संयम से जीवन गुजारे। इसी प्रकार माह मास में शुक्ल पक्ष एकादशी की तिथि आई। इस दिन दोनों ने दिन भर भूखे रहकर पूजा किया और शाम के समय पीपल वृक्ष के नीचे अपने पापों की मुक्ति के लिए भगवान श्री हरि का स्मरण करने लगे। पूरी रात वह भगवान हरि का भजन करते रहे। 

दूसरे दिन उनके विधिवत पूजा करने के कारण उन्हें पिचाश योनि से मुक्ति मिल गई और दोनों फिर से अप्सरा कर रूप धारण कर के स्वर्ग लोक में चले गए। तत्पश्चात सभी देवताओं ने उन दोनों पर पुष्प की वर्षा की और भगवान इंद्र ने भी उन्हें क्षमा कर दिया। इस व्रत के बारे में भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर को बताते हुए कह रहे हैं, कि जिस मनुष्य ने इस व्रत किया है, उसे मनु सब यज्ञ, जप, ज्ञान आदि प्राप्त कर लिया है। इस कारण से इस एकादशी को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

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