- 9 सितंबर को महिलाएं नहाय-खाय का विधान होगा
- जिउतिया के दिन को खुर जिउतिया कहते हैं
- इस व्रत को करने से पूरे कुल की भी रक्षा होती है
जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु और रक्षा के साथ ही वंश वृद्धि के लिए महिलाएं करती हैं। यह व्रत निर्जला होता है। आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि यानी 10 सितंबर को जिउतिया व्रत रखा जाना है। 24 घंटे के निर्जला व्रत करने के बाद अगले दिन महिलाएं इस व्रत का पारण करती हैं। इस व्रत को करने के साथ इस दिन महिलाएं अपने बच्चों को इस व्रत से जुड़ी कथा भी सुनाती हैं। मान्यता है कि इस कथा को कहने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है। तो आइए इस व्रत से जुड़ी पूजा विधि, महत्व और कथा को जानें।
9 सितंबर की रात से शुरू होगी अष्टमी / jivitputrika vrat 2020 date
आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 9 सितंबर की रात को 9 बजकर 46 मिनट से आरंभ हो जाएगी, लेकिन जिउतिया का व्रत अगले दिन 10 सितंबर को रखा जाएगा। 10 सितंबर की रात 10 बजकर 47 मिनट तक अष्टमी रहेगी। 10 सितंबर को अष्टमी में चंद्रोदय का अभाव है और यही वजह है कि इस दिन जिउतिया का व्रत रखा जाएगा।
व्रत से एक दिन पहले होगा नहाय-खाय
9 सितंबर को महिलाएं नहाय-खाय का विधान करेंगी। यह व्रत के दिन पहले किया जाता है। इसके लिए एक दिन पहले भी आप नहाने के पानी में गंगाजल मिला लें और तब स्नान करें। इसके बाद महिलाएं मड़ुआ रोटी, नोनी का साग, कंदा, झिमनी आदि का सेवन करती हैं। इस दिन भगवान के साथ पितरों की पूजा भी की जाती है। नहाय-खाय की सभी प्रक्रिया 9 सितंबर की रात 9 बजकर 47 मिनट से पहले ही करना होगा, क्योंकि इसके बाद अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी।
खुर जिउतिया के दिन भोर में लें व्रत का संकल्प
जिउतिया के दिन को खुर जिउतिया कहते हैं। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर लें और सरगही-ओठगन करके व्रत का संकल्प लें। इस दिन व्रत को बिना जल के साथ करना होता है। इसलिए यह व्रत बेहद कठिन होता है। व्रत का पारण अगले दिन 11 सितम्बर की सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक करने का विधान है। इसलिए व्रती महिलाएं 11 सितंबर को 12 बजे से पहले पारण जरूर कर लें।
जानें जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व / jivitputrika vrat 2020 mahatva
यह व्रत करने वाली महिला की संतान के हर संकट दूर होते हैं और उसे लंबी आयु की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि यह व्रत जो भी महिला करती हैं, उससे उसके इस।
व्रत के दिन बच्चों को सुनाएं जीवित्पुत्रिका व्रत कथा / Jitiya vrat katha
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है। महाभारत युद्ध के बाद जब सब कुछ खत्म हो गया था तो अश्वत्थामा अपने पिता की मौत से बेहद दुखी था और उसके अंदर बदले की भावना पलने लगी थी। बदले के भावना से अश्वत्थामा ने पांडवो के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगों को यह सोच कर मार डाला कि वह पांचों पांडव हैं,लेकिन असल में वे सभी द्रोपदी की पांच संताने थी। अपनी संतानों की हत्या से क्रोधित अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उसका मणि भी छीन लिया। इससे क्रोधित हो कर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु और उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया। इस ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के पुत्र को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर बच्चे को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में ही उत्तरा की संतान मर कर फिर से जीवित हो गई थी और इसी कारण उत्तरा के पुत्र का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और आगे जाकर यही राजा परीक्षित बना। तो जिस तरह से भगवान ने उत्तरा की संतान की रक्षा की उसी तरह हर मां अपने बच्चे की रक्षा के लिए ये व्रत करती है।