- यदि ननिहाल में श्राद्ध करने वाला न हो तो प्रतिपदा के दिन करें तर्पण
- तपर्ण हमेशा कुतप बेला में करना चाहिए, तभी यह पितरों को मिलता है
- श्राद्ध करते समय पूर्वजों की तस्वीर दक्षिण-पश्चिम में होनी चाहिए
पूर्वजों का श्राद्ध उनकी किसी भी महीने में हुई मृत्यु की तिथि के अनुसार पितृ पक्ष में किया जाता है। पितृपक्ष 16 दिन का होता है और प्रत्येक दिन किसी न किसी के श्राद्ध का होता है, लेकिन कुछ पूर्वजों का श्राद्ध केवल उनकी मृत्यु की तिथि पर नहीं होता, बल्कि उनके श्राद्ध के लिए विशेष दिन निर्धारित होता है। ऐसी ही तिथि प्रतिपदा भी होती है।प्रतिपदा के दिन मृत्यु को प्राप्त हुए पूर्वजों के साथ ननिहाल पक्ष के पूर्वजों का भी पिंडदान कर तर्पण किया जाता है। नाना-नानी का श्राद्ध प्रतिपदा के दिन किया जाता है। नाना-नानी का श्राद्ध तब किया जाता है जब ननिहाल में श्राद्ध करने वाला कोई नहीं होता।
पूर्णिमा के दिन ऋषियों का होता है श्राद्ध
श्राद्ध पूर्णिमा पर पूर्णिमा के दिन मृत्यु प्राप्त किए लोगों के साथ उन ऋषियों के नाम से भी श्राद्ध किया जाता है जिसका वंश या गोत्र से परिवार चलता है। उसी तरह प्रतिपदा के दिन नाना-नानी का श्राद्ध करने का विधान है। श्राद्ध हमेशा कुतप बेला यानी मध्याह्न में करना चाहिए। दो सितंबर को सुबह 9:34 बजे तक ही पूर्णिमा है, इसके बाद प्रतिपदा प्रारंभ हो जाएगी जो अगले दिन 3 सितंबर को सुबह 10:48 बजे तक रहेगी। इसलिए प्रतिपदा का श्राद्ध सुबह 10:48 तक कर लेना चाहिए।
श्राद्ध करते हुए वास्तु का रखें ध्यान
पूर्वजों का श्राद्ध करते हुए वास्तु के नियमों का ध्यान जरूर रखें। श्राद्ध करते समय पूर्वजों की तस्वीर हमेशा नैर्ऋत्य दिशा (दक्षिण-पश्चिम) में होनी चाहिए। तस्वीर अलग से रखें और उनके साथ देवी-देवता न रखें। पूर्वज आदरणीय हैं, लेकिन वे इष्ट देव का स्थान नहीं ले सकते। फूल-फल और धूप-दीप प्रदान कर पूर्वजों को जल अर्पित करें।
श्राद्ध में 5 मुख्य कर्म जरूर करें
1.तर्पण- दूध, तिल, कुश, पुष्प के साथ पितरों को जल अर्पित करें।
2. पिंडदान- चावल या जौ से पिंडी बनाएं और फिर जरूरतमंदों को भोजन खिलाएं।
3. वस्त्रदानः निर्धनों को वस्त्र का दान जरूर करें।
4. दक्षिणाः भोजन के पश्चात दक्षिणा जरूर दें।
5. पूर्वजों के नाम पर अन्न दान या जरूरत के सामान का दान जरूर करें।
श्राद्ध कैसे करें?
श्राद्ध के दिन स्नान-ध्यान पूर्वजों की पूजा कर उनके लिए शुद्ध और सात्विक भोजन बनाएं। इसके बाद भोजन को पांच जगह निकालें। गाय, कौवा, कुत्ता और चींटी के साथ ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन परोसते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को कच्चा अनाज भी भेंट करें। इसमें वह सारी चीजें रखें जो आपके पूर्वजों को पसंद थीं और उनके एक साल तक की जरूरत को पूरा करे। जैसे चावल, दाल, चीनी, नमक, मसाले, कच्ची सब्जियां, तेल और मौसमी फल आदि। इसके बाद पूर्वजों से जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगे और इसके बाद घर में परिजनों को भोजन परोसों।