- कल्पवास करने वाले श्रद्धालु कल्पवासी होते हैं
- गृहस्थ आश्रम में रहने वालों के लिए होता है कल्पवास
- कल्पवास में स्नान, पूजा और ध्यान करना होता है
संगम तट पर हर साल माघ मेले में कल्पवास का आयोजन होता है। एक महीने तक चलने वाले माघ स्नान को कल्पवास के नाम से जाना जाता है। इस दौरान श्रद्धालु एक महीने तक गंगा तट के किनारे ही रहते हैं और गंगा सेवन करते हैं। पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाला माघ स्नान महाशिवरात्रि तक चलता है। इस साल 10 जनवरी से माघ स्नान शुरू हो रहा है, जो 21 फरवरी तक चलेगा। इसे माघी स्नान या कल्पवास के नाम से भी जाना जाता है।
कल्पवास स्नान सेहत के लिए भी अच्छा
प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने माघ स्नान को कल्पवास का नाम दिया था। कल्पवास स्नान पवित्र नदियों में किया जाता है। ये स्नान ऐसे समय में होता है जब नदियों का तापमान भी बहुत कम होता है। ऐसा माना जाता है कि 5 से 6 डिग्री तापमान पर नदियों का जल जब पहुंचा जाता है तो इसमें रोग फैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं। साथ ही सुबह स्नान के बाद सूर्य की किरणें जब शरीर पर पड़ती हैं तो इससे शरीर निरोगी बनता है।
कल्पवास के दौरान भोजन होता है सात्विक
कल्पवास के दौरान सात्विक भोजन किया जाता है। इससे शरीर का शुद्धिकरण भी होता है। इस दौरान फल आदि अधिक खाएं जाते हैं, इससे शरीर में विटामिन और मिनिरल्स की कमी भी पूरी हो जाती है।
कल्पवास क्या है
मत्स्यपुराण के अनुसार कल्पवास का अर्थ पवित्र नदी के किनारे रह कर ध्यान और वेदाध्ययन करना होता है। संगम तट पर कल्पवास करना बेहद महत्वूपर्ण माना गया है। पद्म पुराण के अनुसार संगम तट पर प्रवास करने वाले को सदाचारी, शांत मन और जितेन्द्रिय पर विजय करना जरूरी होता है। मत्स्यपुराण में कहा गया है कि जो भी जातक कल्पवास करने का निश्चय करता है वह अगले जन्म में राजा समान जीवन पाता हे। कल्पवास के दौरान तप, यज्ञ और दान करना बहुत पुण्यदायी होता है।
कल्पवासियों के लिए ऐसे हैं निमय
पुरातन समय में ऋषि-मुनियों ने गृहस्थ आश्रम में रहने वालों के लिए कल्पवास करने का विधान रखा था। ताकि गृहस्थ आश्रम में रहने वाले भी दान-पुण्य का लाभ उठा सकें। कल्पवासियों को पत्तों और घासफूस से बनी कुटिया में रहने का नियम है।
कल्पवास के दौरान दिन में एक बार भोजन किया जाता है। मन, कर्म ओर भाव से इंसान को निर्मल होना होता है। कल्पवासियों को सूर्योदय से पूर्व गंगा स्नान करना हाता है। सत्संग करने और देर रात तक भजन, कीर्तन करना पुण्य प्राप्ति का रास्ता बताया गया है।